Wednesday 31 July 2019

मन में आकाश की ऊँचाई तू..

मन में आकाश की ऊँचाई तू,
रख़ हमेशा,
मन में सागर की गहराई तू,
रख़ हमेशा,

ऐ इन्सान तू डरता है क्या,
आँखों में आशा के दीये तू,
जला के रख़ हमेशा,

मन में आकाश की ऊँचाई तू,
रख़ हमेशा,
मन में सागर की गहराई तू,
रख़ हमेशा,

पाँव थक जाएँ तो,
थोड़ा थम जा जरा,
आँखे अगर थक जाएँ तो,
थोड़ा पलकें झुका,

पर रूकना ना तू,
सदा के लिए,
चलते रहना तू जैसे,
चलती है धरती सदा,

मन में आकाश की ऊँचाई तू,
रख़ हमेशा,
मन में सागर की गहराई तू,
रख़ हमेशा,

मन में आकाश की ऊँचाई तू,
रख़ हमेशा,
मन में सागर की गहराई तू,
रख़ हमेशा 
कवि मनीष 

Tuesday 30 July 2019

वो किसान है जो..

वो किसान है जो,
निवाला हमे देता है,
वो किसान है जो,
पसीना सबके लिए बहाता है,

वो किसान है जो,
निवाला हमें देता है, 

पर बदले में उसे जो मिलता है,
उससे क्या उसका जीवन चलता है,
कुछ बातें सदा उसके लिए लिखा करो,
इसी से तो उसे जीनें का दम मिलता है,

वो किसान है जो,
निवाला हमें देता है,
वो किसान है जो,
निवाला हमें देता है,

जब भी देखो उसकी दुर्दशा तुम,
आवाज़ अक़्सर तुम उठाया करो,
वो तो तुमको अपना समझते हैं हीं,
तुम भी उनको अपना समझा करो,

क्योंकि वो किसान है जो,
सूरज को भी झुका देता है,
वो किसान है जो,
निवाला हमें देता है,

वो किसान है जो,
पसीना सबके लिए बहाता है,
वो किसान है जो,
निवाला हमें देता है

कवि मनीष 

Sunday 28 July 2019

जीवन का हर पल..

जीवन का हर पल क़ुर्बान करते हैं,
हम हैं फ़ौजी लहू अपना सदा नाम वतन के करते हैं,
हमारे लिए सदा सम्मान बचा के रख़ना ज़रा,
क्योंकि वतन की मिट्टी को हम सदा सलाम करते हैं

हम हैं फ़ौजी लहू अपना सदा नाम वतन के करते हैं,

आँसू की हर एक बूंद हम पीते हैं,
ख़ून से अपनीं मिट्टी वतन की सींचते हैं,
आँखों में हरदम ज़िन्दा वतन की तस्वीर रख़ते हैं,
दिखे जो पतझड़ तो उसे बहार करते हैं 

हम हैं फ़ौजी लहू अपना सदा नाम वतन के करते हैं,

जीवन का हर पल क़ुर्बान करते हैं,
हम हैं फ़ौजी लहू अपना सदा नाम वतन के करते हैं,
हमारे लिए सदा सम्मान बचा के रख़ना ज़रा,
क्योंकि वतन मिट्टी को हम सदा सलाम करते हैं 

हम हैं फ़ौजी लहू अपना सदा नाम वतन के करते हैं
कवि मनीष 



Saturday 27 July 2019

कहता है गर्व से..


                        
कहता है गर्व से ये तिरंगा हमारा,
ये तीनों रंग है मेरे तेरे खुशहाली का किनारा,
ये तीनों रंग हैं मेरे मज़हबों का संगम,
ये मेरे रंग हीं बनातें हैं तस्वीर हमारे वतन का न्यारा
कवि मनीष 

Friday 26 July 2019

शहीदों के लहू से..

शहीदों के लहू से जब रंगता है हिमालय,
तब जीत की गूंज से गूंजता है हिमालय,
जो जान हथेली पर लेके चलते हैं,
उन्हीं लहू की इबारत लिखता है हिमालय,

हम हीं तो हैं हाफ़िज़ ए वतन,
हम हीं से है ज़िन्दा वतन,
हम हैं तो है हँसता तिरंगा,
हम हीं से है महकता चमन,

जीत का परचम हम जब हैं लहराते,
आगे हमारे सर झुकाता है हिमालय,
शहीदों के लहू से जब रंगता है हिमालय,
तब जीत की गूंज से  गूंजता है हिमालय,

शहीदों के लहू से जब रंगता है हिमालय,
तब जीत की गूंज से गूंजता है हिमालय,
जो जान हथेली पर लेके चलते हैं,
उन्हीं लहू की इबारत लिखता है हिमालय,

उन्हीं लहू की इबारत लिखता है हिमालय,
उन्हीं लहू की इबारत लिखता है हिमालय,
उन्हीं लहू की इबारत लिखता है हिमालय,
उन्हीं लहू की इबारत लिखता है हिमालय 
कवि मनीष 

Thursday 25 July 2019

खुशी के साथ..

खुशी के साथ ग़र ग़म ना होता,
प्यार के साथ कभी नफ़रत ना होता,
तब ज़िन्दगी, ज़िन्दगी नहीं होती,
वसंत के साथ कभी पतझड़ ना होता,

यही है जीवन का उसूल,
अगर बहार है तो ख़ार भी है,
अगर सूखा है तो बरसात भी है,
हर इन्सान को थाम के चलना है इन दोनों का दामन,

क्योंकि दिन है तो रात भी है,
अगर है सूरज तो माहताब भी है,
अगर ऐसा ना होता तो क़ुदरत ना होता,
खुशी के साथ ग़म ना होता,

खुशी के साथ ग़र गम ना होता,
प्यार के साथ कभी नफ़रत ना होता,
तब ज़िन्दगी, ज़िन्दगी नहीं होती,
वसंत के साथ कभी पतझड़ ना होता
कवि मनीष 



Wednesday 24 July 2019

हैं निगाहें आपकी जैसे..

हैं निगाहें आपकी जैसे,
नीला-नीला हो समंदर,
है बातें आपकी जैसे,
छाया हो धूप में बादल,

रंग है आपका जैसे,
फूलों की होती है रंगत,
हैं बातें आपकी जैसे,
छाया हो धूप में बादल,

बातें हैं आपकी जैसे,
टिमटिमाते हैं तारे पल-पल,
हैं बातें आपकी जैसे,
छाया हो धूप में बादल,

छाया हो धूप में बादल,
छाया हो धूप में बादल,
छाया हो धूप में बादल,
छाया हो धूप में बादल 
कवि मनीष 

Tuesday 23 July 2019

सूरज जब है रंगता..

सूरज जब है रंगता अपनें रंग से गगन,
गुलाबी-गुलाबी अम्बर बन जाता है जैसे खिलता चमन,
सुबह-शाम रंग इसका देख,
कभी मुस्कुराता, कभी हँसता है चमन,

ख़ुद को जलाकर ये देता है धरती को जीवन,
देख इसका त्याग धन्य-धन्य हो जाता है तन-मन,
जलता ये सूर्य कहता है हमसे,
तू भी स्वार्थ त्याग मानवता को अपनाकर करले धन्य अपना भी जीवन,

सूरज जब है रंगता अपनें रंग से गगन,
गुलाबी-गुलाबी अम्बर बन जाता है जैसे खिलता चमन,
सुबह-शाम रंग इसका देख,
कभी मुस्कुराता, कभी हँसता है चमन 
कवि मनीष 

Monday 22 July 2019

आया सावन झूम के..

आया सावन झूम के,
हरी-हरी धरती गाये घूम-घूम के,
आया सावन झूम के,

शिव,शंकर,शंभु की टोली आई,
झूम-झूम के,
आया सावन झूम के,

बाजी जब भोले की शहनाई,
सारा जग नाचा झूम-झूम के,
आया सावन झूम के,

बगियों में नई रौनक़ आई,
फूल-कलियाँ खिलखिलाईं,
झूम-झूम के,

आया सावन झूम के,
आया सावन झूम के,
आया सावन झूम के 
कवि मनीष 

Sunday 21 July 2019

भूलीहा न कहीयो..

भूलीहा न कहीयो,
तू हमार प्यार के,
चाहे रहअ केन्हुओ,
संसार में,

कईसे भूलम ऐ सजनीं,
हम तोहार प्यार के,
तू हीं तअ निकालअ ह हमरा,
मझधार से,

चिठीया लिखिया रोजे,
भूलीहा न कहीयो,
हम तअ राह हीं सजना,
पर तू ह मंजिल हमार प्यार के,

कईसे भूलम ऐ सजनीं,
हम तोहार प्यार के,
तू हीं तअ निकालअ ह हमरा,
मझधार से,

भूलीहा न कहीयो,
तू हमार प्यार के,
चाहे रहअ केन्हुओ,
संसार में,

चाहे रहअ केन्हुओ,
संसार में,
चाहे रहअ केन्हुओ,
संसार में 
कवि मनीष 

जिस इन्सान के भीतर..

जिस इन्सान के भीतर इन्सानियत मर जाती है,
उस इन्सान के भीतर रिश्तों की भी एहमियत मर जाती है,
उस इन्सान को जीनें का रह नहीं जाता कोई हक़,
क्योंकि सड़ें अंग को काटकर फेंकनें से हीं जीनें की ताक़त बच पाती है 
कवि मनीष 

Saturday 20 July 2019

फूल जईसन चेहरा बा..

फूल जईसन चेहरा बा,
गुंड़ जईसन बतिया,
तोहे देख के सब,
खिल गईल कलिया,

चंदा जईसन चमकेला,
तोहार सब बोलिया,
तोरे तरफ़ मुड़ गईल,
हमार सब गलिया,

तोरे बतियन से मन बहलाईं,
हम तअ सजना,
तोरे बतियन से त खनकेला,
हमार कंगना,

फूल जईसन चेहरा बा,
गुंड़ जईसन बतिया,
तोहे देख के सब,
खिल गईल कलिया,

तोहे देख के सब,
खिल गईल कलिया,
तोहे देख के सब,
खिल गईल कलिया 
कवि मनीष 

जो ठान ले मन में तू..

जो ठान ले मन में तू,
बस वही तू कर,
ऐ इन्सान तू अपनें,
ख़्वाबों से बातें कर,

कोई कहे कुछ भी तुझे,
बस तू अपनीं धुन में रह,
अपनें हौसले को इक्कठा कर,
तू पूरी ताक़त से लड़,

ऐ इन्सान तू सदा,
ख़ुद पे यक़ीन कर
जो ठान ले मन में तू,
बस वही तू कर,

जो ठान ले मन में तू,
बस वही तू कर,
ऐ इन्सान तू अपनें,
ख़्वाबों से बातें कर,

ऐ इन्सान तू अपनें,
ख़्वाबों से बातें कर,
ऐ इन्सान तू अपनें,
ख़्वाबों से बातें कर 
कवि मनीष 

Friday 19 July 2019

ज़िन्दगी की राह पे तू चलता जा..

ज़िन्दगीं राह पे तू चलता जा,
ऐ इन्सान तू बस बढ़ता जा,
हवा का रूख़ करके अपनीं ओर,
बस जीवन की दिशा में तू बढ़ता जा 

परिश्रम से हीं मिलती है सफ़लता,
बस इस बात पे तू अमल करता जा,
नेक़ पथ पे करके ख़ुद को अग्रसर 
तू बेफ़िक्र होके बस चलता जा,

ज़िन्दगी की राह पे तू चलता जा,
ऐ इन्सान तू बस बढ़ता जा,
हवा का रूख़ करके अपनीं ओर,
बस जीवन की दिशा में तू बढ़ता जा 
कवि मनीष 

Thursday 18 July 2019

हँसती हो तो तुम ऐसा लगता है..

हँसती हो तुम तो ऐसा लगता है,
तुम्हारे चेहरे पे हीं तो बहार सजता है,
मैं तो हूँ तुम्हारी हरपल, हरदम के लिए,
तुम्हीं से तो मेरे चेहरे पे निख़ार आता है,

जैसे गंगा जीती है हरपल धरती के लिए,
वैसे हीं मैं जीता हूँ बस तुम्हारे लिए,
तुम्हीं से तो मेरे चेहरे पे निख़ार आता है,
मैं तो हूँ तुम्हारी हरपल, हरदम के लिए,

हँसती हो तुम ऐसा लगता है,
तुम्हारे चेहरे पे हीं तो बहार सजता है,
मैं तो हूँ तुम्हारी हरपल, हरदम के लिए,
तुम्हीं से तो मेरे चेहरे पे निख़ार आता है,

तुम्हीं से तो मेरे चेहरे पे निख़ार आता है,
तुम्हीं से तो मेरे चेहरे पे निख़ार आता है,
तुम्हीं से तो मेरे चेहरे पे निख़ार आता है 
कवि मनीष 


Wednesday 17 July 2019

दमकेला ऐ सजनीं..

दमकेला ऐ सजनीं,
अईसे चेहरा तोहार,
जईसे छाईल बा सगरो बहार,
ऐ सजनीं,
जईसे छाईल बा सगरो बहार 

तोहार मीठ-मीठ बतियन से,
छलकेला प्यार ऐ सजना,
जईसे छाईल बा सगरो बहार,
ऐ सजना,
जईसे छाईल बा सगरो बहार,

चलअ ह तू जब ऐ सजनीं,
तबे मुड़ेला नदियन के धार,
ऐ सजनीं,
जईसे छाईल बा सगरो बहार,
ऐ सजनीं,
जईसे छाईल बा सगरो बहार,

तोहार मीठ-मीठ बतियन से,
छलकेला प्यार ऐ सजना,
जईसे छाईल बा सगरो बहार,
ऐ सजना,
जईसे छाईल बा सगरो बहार,

हँसअ ह जब तू ऐ सजनीं,
खिलेला कलियन हज़ार,
ऐ सजनीं,
जईसे छाईल बा सगरो बहार,
ऐ सजनीं,
जईसे छाईल बा सगरो बहार,

तोहार मीठ-मीठ बतियन से,
छलकेला प्यार ऐ सजना, 
जईसे छाईल बा सगरो बहार,
ऐ सजना,
जईसे छाईल बा सगरो बहार,

जईसे छाईल बा सगरो बहार,
ऐ सजना,
जईसे छाईल बा सगरो बहार,
जईसे छाईल बा सगरो बहार 
ऐ सजना,
जईसे छाईल बा सगरो बहार 
कवि मनीष 



Tuesday 16 July 2019

हैं निगाहें आपकी जैसे..

हैं निगाहें आपकी जैसे,
आसमाँ में है चमकता चाँद,
हैं अदाएँ आपकी जैसे,
बादलों में छुपता हुआ चाँद,

हर मौसम देखकर आपको कहता है ये,
है ताज़गी आपकी जैसे,
हर मौसम में छा गया हो बहार,

होंठ हैं आपके जैसे,
कोई हँसता हुआ ग़ुलाब,
बदन है आपकी जैसे,
धरती पे है खड़ा ताज,

हैं निगाहें आपकी जैसे,
आसमाँ में है चमकता चाँद,
हैं अदाएँ आपकी जैसे,
बादलों में छुपता हुआ चाँद 

कवि मनीष 


देश ये मेरा अभिमान है..

देश ये मेरा अभिमान है,
जो ना थमेगा कभी ये वो तूफ़ान है,
इस तूफ़ान सब बिख़र जाएँगे,
कहता ये अमर बलिदान है,

आज और कल भी हमारा है,
टूटी कश्तियों का ये किनारा है,

देश है ये मेरा जैसे गगन,
देश है ये मेरा जैसे हरदम महकता चमन,
देश है ये मेरा जैसे गगन,
देश है ये मेरा जैसे हरदम महकता चमन,

तोड़ के हर दीवार हम अमन ले आएँगे,
एकजुट हो हम तो क्या नहीं कर जाएँगे,
तोड़ के हर दीवार हम अमन ले आएँगे,
एकजुट हो हम तो क्या नहीं कर जाएँगे,

देश है ये मेरा जैसे गगन,
देश है ये मेरा जैसे हरदम महकता चमन,

देश ये मेरा अभिमान है,
जो ना थमेगा कभी ये वो तूफ़ान है,
इस तूफ़ान में सब बिख़र जाएँगे,
कहता है ये अमर बलिदान है,

देश है ये मेरा जैसे गगन,
देश है ये मेरा जैसे हरदम महकता चमन,
देश है ये मेरा जैसे गगन,
देश है ये मेरा जैसे हरदम महकता चमन 
देश है ये मेरा जैसे गगन,
देश है ये मेरा जैसे हरदम महकता चमन 
कवि मनीष 






Monday 15 July 2019

हुस्न तो ऐसा है आपका..

हुस्न तो ऐसा है आपका,
जैसे धरती पे हो चाँद रात का,
है उजाला, सब रौनक़ तुमसे हीं,
तुम तो हो लाली आफ़ताब का,

है आँचल तेरा जैसे,
नीला-नीला गगन फैला है जैसे,
तुम तो हो रंग आकाश का,
तुम तो हो हरियाली बरसात का,

हुस्न तो ऐसा है आपका,
जैसे धरती पे हो चाँद रात का,
है उजाला, सब रौनक़ तुमसे हीं,
तुम तो हो लाली आफ़ताब का,

हुस्न तो ऐसा है आपका,
हुस्न तो ऐसा है आपका,
हुस्न तो ऐसा है आपका 
कवि मनीष 


Sunday 14 July 2019

राह में जब मुलाक़ात हुई..

राह में जब मुलाक़ात हुई,
रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम,बरसात हुई,
राह में जब मुलाक़ात हुई,

कलियाँ सारी खिल गईं मुस्कुराते हुए,
भंवरे सारे हो गए चंचल मंडराते हुए,
नदियाँ सारी हो गईं चंचल बलख़ाते हुए,

गुलाबी-गुलाबी फ़िज़ा हो गई सारी,
राह में जब मुलाक़ात हुई,
रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम, बरसात हुई,

राह में जब मुलाक़ात हुई,
राह में जब मुलाक़ात हुई,
राह में जब मुलाक़ात हुई 
कवि मनीष 

Saturday 13 July 2019

आई जो याद आपकी..

आई जो याद आपकी,
हम ख़्यालों में ख़ो गएँ,
फैली हुई चाँदनी,
के उजाले में ख़ो गएँ,

आई जो याद आपकी,

वो जुल्फ़ घनेरी आपकी,
मुझपे बिख़र गई,
ख़ुशबू ए हुस्न आपकी,
बहारों में बिख़र गई,

रंग सारे आपके,
तारों में भर गएँ,
और रंग वो सारे,
मुझपे बिख़र गएँ,

आई जो याद आपकी,
हम ख़्यालों में ख़ो गएँ,
फैली हुई चाँदनी,
के उजाले में ख़ो गएँ,

आई जो याद आपकी 
कवि मनीष 

Friday 12 July 2019

बहारों का आया है पयाम..

बहारों का आया है पयाम,
हर लमहा अब तो है चाहत के नाम,
उजियारा है ऐसा चारों ओर,
जैसे बादलों से निकल आया हो चाँद,

बहारों का आया है पयाम,
बहारों का आया है पयाम,

हर रात अब तो नूर ए चाँद की जमीं पर है बैठी हुई,
हर बात अब तो चाशनीं में है लिपटी हुई,
अब तो चमन की हर ख़ुशबू कर रही है सलाम,

बहारों का आया है पयाम,

बहारों का आया है पयाम,
हर लमहा अब तो है चाहत के नाम,
उजियारा है ऐसा चारों ओर,
जैसे बादलों से निकल आया हो चाँद,

बहारों का आया है पयाम,
बहारों का आया है पयाम,
बहारों का आया है पयाम,
बहारों का आया है पयाम 

कवि मनीष 

Wednesday 10 July 2019

जैसे आसमाँ में सूरज न्यारा है..

जैसे आसमाँ में सूरज न्यारा है,
वैसा हीं देश हमारा है,
धरती को गरिमा देता है,
और हमको जीवन देता है,

यही तो भटकों का किनारा है,
ये देश हीं तो हमारा सहारा है,
जैसे सीप में है मोती,
वैसा हीं ये देश हमारा है,

इसके अनेकों रूप में समाई है दुनिया सारी,
ये तो सिखाता भाईचारा है,
नफ़रत छोड़ मोहब्बत को थामों,
क्योंकि भारत तो मज़हबों का संगम प्यारा है,

जैसे आसमाँ में सूरज न्यारा है,
वैसा हीं देश हमारा है,
धरती को गरिमा देता है,
और हमको जीवन देता है,

ये आशाओं का भण्डारा है,
जो हमेशा चमचमाए ये वो सितारा है,
जैसे आसमाँ में सूरज न्यारा है,
वैसा हीं देश हमारा है,

वैसा हीं देश हमारा है,
वैसा हीं देश हमारा है,
वैसा हीं देश हमारा है,
वैसा हीं देश हमारा है 
कवि मनीष 

Tuesday 9 July 2019

फूलों के इक बाग में..

फूलों के इक बाग में,
खिली है इक कली,
जैसे सूरज की पहली किरण,
धरती को छू गई,

रौनक़ है उसकी जैसे,
पूनम का चाँद,
सर पे है जैसे,
ख़ुला आसमान,

जैसे घटा क़ाली,
बरस रही हो झूम के,
जैसे कोई मोर,
नाच रहा हो झूम के,

फूलों के इक बाग में,
खिली है इक कली,
जैसे सूरज की पहली किरण,
धरती को छू गई,

फूलों के इक बाग में,
खिली है इक कली,
जैसे सूरज की पहली किरण,
धरती को छू गई,

फूलों के इक बाग में 
कवि मनीष 








वीरों की हर बात निराली..


वीरों की हर बात निराली,
जैसे धरती पर सूरज की लाली,
जान हथेली पर लेके वो तिरंगे का सम्मान करें,

जब विजय होकर वो लौटे,
सारा देश जय-जयकार करे,

वीरों तुम्हें सलाम,
वीरों तुम्हें प्रणाम,

भारत माँ के वीर हैं वे तो,
सिंह भी जिनका जय-जयकार करे,
जैसे गरजते बादल को मेघ भी प्रणाम करे,

वीरों तुम्हें सलाम,
वीरों तुम्हें प्रणाम,

वीरों की हर बात निराली,
जैसे धरती पर सूरज की लाली,
जान हथेली पर लेके वो तिरंगे का सम्मान करें,

वीरों तुम्हें सलाम,
वीरों तुम्हें प्रणाम,
वीरों तुम्हें सलाम,
वीरों तुम्हें प्रणाम,
वीरों तुम्हें सलाम,
वीरों तुम्हें प्रणाम 

कवि मनीष 

Monday 8 July 2019

लाली होंटवा से..

लाली होंटवा से,
लाली होंटवा से,
दे दअ तनिक प्यार हो,

चलअ ह तू जब,
चलेला बहार हो,

आपन दिलवा के,
आपन दिलवा के,
कईसे समझाई हो,

चलअ ह तू जब,
चलेला बहार हो ,
चलअ ह तू जब,
चलेला बहार हो,

गोर-गोर मुखरा ह,
गोर-गोर मुखरा ह,
जईसे दूधवा के धार हो,

चलअ ह तू जब,
चलेला बहार हो,
चलअ ह तू जब,
चलेला बहार हो,

लाली-लाली होंटवा से,
लाली-लाली होंटवा से,
दे दअ तनिक प्यार हो,

चलअ ह तू जब,
चलेला बहार हो,
चलअ ह तू जब,
चलेला बहार हो 
कवि मनीष 


Sunday 7 July 2019

ऐगो बिधवा मेहरारू के कहार..

कईसे आपन मनवा के हम समझाई हो,
कईसे आपन दिलवा के हम समझाई हो,
सूखल-सूखल होंटवा के,
सूखल-सूखल होंटवा के,
कईसे समझाइ हो,

कईसे आपन मनवा के हम समझाई हो,
कईसे आपन दिलवा के हम समझाई हो,

काहे हमरा छोर के तू,
काहे हमरा छोर के तू,
चल गेला सईंया हमार हो,

कईसे आपन मनवा के हम समझाई हो,
कईसे आपन दिलवा के हम समझाई हो,

जईसे अमावस के रतिया बा,
जईसे अमावस के रतिया बा,
अईसे सगरो छाईल ह अंधार हो,

कईसे आपन मनवा के हम समझाई हो,
कईसे आपन दिलवा के हम समझाई हो,
कईसे आपन मनवा के हम समझाई हो,
कईसे आपन दिलवा के हम समझाई हो 

कवि मनीष 

करती है जो सिंह की सवारी

करती है जो सिंह की सवारी,
वो माँ है मेरी ज्योता वाली,
करती है जो सिंह की सवारी,
वो माँ है मेरी ज्योता वाली,

अष्ट भुजा में शक्ति सारी,
जिससे डरते सारे दुराचारी,
जब गुस्सा तेरा चढ़ के बोले,
सारे दुष्टों की बुद्धि डोले,

जैसे गगन में तारे मईया,
वैसे देती तू आशीष मईया,
आँखों में तेरी ममता के दीपक,
जो जलते रहते हरपल,

तेरी माया सबसे निराली,
तू है मेरी ज्योता वाली,
करती है जो सिंह की सवारी,
वो माँ है मेरी ज्योता वाली,

करती है जो सिंह की सवारी,
वो माँ है मेरी ज्योता वाली,
करती है जो सिंह की सवारी,
वो माँ है मेरी ज्योता वाली 

कवि मनीष 
(मनीष कुमार)









Saturday 6 July 2019

तिरंगा हमारा

शान से लहराए तिरंगा हमारा,
अभिमान से लहराए तिरंगा हमारा,
रौनक़ इसकी सदा रहे बरक़रार,
चाहे जान चली जाए हमारी पर कभी मुरझाए ना तिरंगा हमारा 
कवि मनीष 


हम हैं फ़ौजी

ताक़त हमारी फ़ौलादों सी,
मोहब्बत हमारी फूलों सी,
हम हैं हिन्दुस्तान के प्रहरी,
चमक हमारी सितारों सी
कवि मनीष 

Friday 5 July 2019

सुकून

सुकून कहाँ रहा बचा इस संसार में,
चैन ओ सुकूँ भी बिक रहा इस संसार में,
भला मन को सुकून कैसे देंगे सिर्फ साधन मनोरंजन के,
सुकून तो ख़त्म हो रहा इस संसार में 
कवि  मनीष  

Thursday 4 July 2019

ख़ूबसूरत

ख़ूबसूरत है वो जो दे सहारा किसी क़मज़ोर को,
ख़ूबसूरत है वो जो दे किनारा किसी क़मज़ोर को,
शरीर की ख़ूबसूरती नहीं असली ख़ूबसूरती,
ख़ूबसूरत है वो जो दे छाया किसी क़मज़ोर को 
कवि मनीष 

Wednesday 3 July 2019

ज़िन्दगी है नाम संघर्ष का..

ज़िन्दगी है नाम संघर्ष का,
हर किसी को पीना है ये जाम संघर्ष का,
चाहे हौसले कितनें भी हों बुलंद,
हर किसी को पार करना है ये दरिया संघर्ष का

कवि मनीष 

प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...