शहीदों के लहू से जब रंगता है हिमालय,
तब जीत की गूंज से गूंजता है हिमालय,
जो जान हथेली पर लेके चलते हैं,
उन्हीं लहू की इबारत लिखता है हिमालय,
हम हीं तो हैं हाफ़िज़ ए वतन,
हम हीं से है ज़िन्दा वतन,
हम हैं तो है हँसता तिरंगा,
हम हीं से है महकता चमन,
जीत का परचम हम जब हैं लहराते,
आगे हमारे सर झुकाता है हिमालय,
शहीदों के लहू से जब रंगता है हिमालय,
तब जीत की गूंज से गूंजता है हिमालय,
शहीदों के लहू से जब रंगता है हिमालय,
तब जीत की गूंज से गूंजता है हिमालय,
जो जान हथेली पर लेके चलते हैं,
उन्हीं लहू की इबारत लिखता है हिमालय,
उन्हीं लहू की इबारत लिखता है हिमालय,
उन्हीं लहू की इबारत लिखता है हिमालय,
उन्हीं लहू की इबारत लिखता है हिमालय,
उन्हीं लहू की इबारत लिखता है हिमालय
कवि मनीष
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