Monday 29 June 2020

जीवन ओके धन्य होई जाए,
जो तोरे चरण शीश नवाए,
हे प्रभु मोरे,
तोरे आशीष से हीं सबके दुःख जाए

कवि मनीष

Sunday 28 June 2020

ज्ञान की ज्योत हर ओर जलानें वाली,
अंधियारे को उजाले में बदलनें वाली,
हे विद्यादायिनी माँ तुम्हारी जय हो,
तुम सदा लिखते रहना आशाओं की कहानी

कवि मनीष

Saturday 27 June 2020

चलती हैं टोलियाँ बाबा के दरबार,
छोड़ के अपना घरबार,कारोबार,
निर्मल मन जब लगाते हैं बाबा का जयकारा,
कृपा लुटातें हैं वो फाड़ के छप्पर हर बार

कवि मनीष 
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Friday 26 June 2020

जय माँ लक्ष्मीं,
सुख-समृद्धि देनें वाली,
निर्धनता दूर भगानें वाली,
जय माँ लक्ष्मीं,

कृपा अपनीं सदा बनाए रखना माँ,
अपना हाथ सदा सर पे रखे रहना माँ,
जय माँ धनदायिनी,
जय माँ लक्ष्मीं,

कभी भी सूखा न होनें देना माँ,
जीवन के बादल में सदा जल भरे रखना माँ,
जय माँ सुखदायिनी,
जय माँ लक्ष्मीं,

जय माँ लक्ष्मीं,
सुख-समृद्धि देनें वाली,
निर्धनता दूर भगानें वाली,
जय माँ लक्ष्मीं,

जय माँ लक्ष्मीं 

कवि मनीष 
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Thursday 25 June 2020

प्यार और नफ़रत साथ-साथ हैं चलते,
इन दोनों में से केवल एक किसी न मिलते,
जब जीवन है तो माता का लगाओ जयकारा,
क्योंकि उसके साथ से हीं सारे कष्ट हैं जाते

कवि मनीष 
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Wednesday 24 June 2020

रात में दिन का अनुभव है होता,
जब हाथ साईं का सर पे है होता,
जल स्वयं मुख में करता नहीं प्रवेश,
मिलती है कृपा जब साईं के दर है कोई जाता

कवि मनीष 
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Monday 22 June 2020

रोती हुई शम्मा नें परवानें से पूछा,
जलाकर तुमको मैंनें दिया धोखा,
पर तुमको फिर भी मुझसे कोई गिला नहीं,
क्या तुमको गुस्सा नहीं है आता,

तब परवानें नें कहा शम्मा से,
मुझको वफ़ा है बेवफ़ा से,
तुमनें डोर ए मुहब्बत को तोड़ डाला,
पर तुम निकाल न सकोगे अब मुझको दिल से,

मैंनें जां देकर तुम्हारे रूह को पा लिया,
अमावस को पूनम बन जला दिया,
अब तुम्हारी नम आँखों में मैं रहूँगा ज़िन्दा हमेशा,
मैंनें पत्थर को मोम बना डाला,

मैं इसलिए मरके भी हूँ ख़ुश होता,

रोती हुई शम्मा नें परवानें से पूछा,
जलाकर तुमको मैंनें दिया धोखा,
पर तुमको फिर भी मुझसे कोई गिला नहीं,
क्या तुमको गुस्सा नहीं है आता 

नज़्म
कवि मनीष 
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Sunday 21 June 2020

कब किसे लग जाए कौन रोग,कोई नहीं जानता,
जीवन में लग जाए कब ये दाग,कोई नहीं जानता,
रहना है नीरोग तो करना है योग,क्योंकि,
कब डस ले बीमारियों का नाग,कोई नहीं जानता

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ
कवि मनीष 
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जीवन के बाग़ का पिता है होता माली,
हर रंग निकलतें हैं जिससे है होता वो,वो पिचकारी,
है पिता वो चमकता सूरज,
जिससे है पलती ज़िन्दगी की फुलवारी

कवि मनीष 
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Thursday 18 June 2020

जय,जय शंकर कैलाशी,
जय,जय शंभु अविनाशी,
भस्म मल शरीर में,
पर्वत पर विराजे,

देव,प्रेत सब उसके दास,दासी,
जय,जय शंकर कैलाशी,
जय,जय शंभु अविनाशी,

कल-कल बहती उसके जटा से गंगा,
जो है इक जीवन स्रोत इस धरती का,
बड़ा हीं निराला रूप है उसका,

वो है हर मन का वासी,
जय,जय शंकर कैलाशी,
जय,जय शंभु अविनाशी

कवि मनीष
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Wednesday 17 June 2020

शहादतों को कोई भूला नहीं सकता,
जो जान चली गई उसे कोई लौटा नहीं सकता,
मेहनत और बलिदान की उसकी कोई कीमत नहीं,
वो फ़ौजी है वो कभी मर नहीं सकता

कवि मनीष 
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Sunday 14 June 2020

जीवन में कोई ऐसी परेशानी नहीं होती,
जिसका कोई हल नहीं होता,
ऐसी कोई दिक्कत नहीं होती,
जिसका कोई हल नहीं होता,

जीवन तो है हमेशा बढ़नें के लिए,
न की जीवन है मरनें के लिए,
और जीवन युवाओं का तो जलती आशा की है इक लौ,
ऐसी लौ जिसका कभी अंत नहीं होता,

जीवन में कोई ऐसी परेशानी नहीं होती,
जिसका कोई हल नहीं होता,
ऐसी कोई दिक्कत नहीं होती,
जिसका कोई हल नहीं होता 

कवि मनीष 
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राम नाम तो बस एक आईना है,
दिखती है मानवता जिसमें ये वो आईना है,
आईना में जिसके कोई खोट नहीं,
जीवन श्री राम का वो सच्चा आईना है 

कवि मनीष 
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Saturday 13 June 2020

घृणित है ये कार्य बहोत इसका न कोई प्रायश्चित,
पैर तोड़कर मासूमों का वो छीन लेते हैं मंज़िल,
मानवता है दम तोड़ देती उस घड़ी,
जब मजबूरी है भारी पड़ जाती बचपन पर 

कवि मनीष 
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Friday 12 June 2020

भुजंग लपेटे है वो करता तांडव,
है रहता इर्द-गिर्द उसके भक्तों का जमघट,
है संसार की धुरी टिकी उसपे हीं,
है बहती गंगधार उसके जटाओं से कल-कल

कवि मनीष 
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Wednesday 10 June 2020

पूजती है दुनिया उसके चरणों में झुककर,
है रहता चमत्कार उसके हाथों में रूककर,
करूणा से अपनीं वो है सब की ज़िन्दगी संवारता,
है रहता दया का सागर उसकी आँखों में ठहरकर

कवि मनीष 
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Monday 8 June 2020

रात को दे सकता है वो उजाला,
जीवन तो है उसका सबसे निराला,
हैं अनेक नाम उसके,
जिसे कहता है सारा जग शंभु अलबेला 

कवि मनीष 
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Sunday 7 June 2020

फटे जेब बाप कभी दिखाता नहीं,
बरसती आँखें बाप कभी दिखाता नहीं,
दिल पत्थर करके वो है रखता,
पर उस पत्थर दिल से नाज़ुक कुछ होता नहीं 

कवि मनीष 
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राम नाम है बसा रोम-रोम में मेरे,
भज तू राम को साथ मैं भी आऊँगा घर तेरे,
छल,कपट त्याग कर बस कर सिमरन प्रभु का,
मैं बजरंगी चल पड़ूँगा साथ तेरे

कवि मनीष 
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Saturday 6 June 2020

हाथ में तिरंगा लेके खड़े हैं वीर,
है किसमें ताक़त जो रख दे फ़ौलादों को चीड़,
आना है जिसको आए,
भूखे शेर हैं अब भारत के वीर

कवि मनीष 
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Friday 5 June 2020

जीवन है बन जाता उनका गंगा सा निर्मल,
जो जपते हैं गंगाधर का नाम हरपल,
एक लौ है आशा की प्रज्वलित रहती,
जो बसा कर हैं रखते हिर्दय में भोले नाथ को हरपल 

कवि मनीष
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Thursday 4 June 2020

बेज़ुबानों का दर्द जब निकल के बाहर आता है,
चीख़ों से सारा मंज़र दहल जाता है,
मेरी नज़र में बेज़ुबानों को मारनें वालों को भी मिलनीं चाहिए, सज़ा ए मौत,
बस यही इस कवि का दिल कहता है 

कवि मनीष 
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Wednesday 3 June 2020

बुरे वक्त में देकर साथ हमारा,
छोड़ती नहीं माता अपनें संतानों को कभी बेसहारा,
बांध कर ममता की डोर से,
माँ देती है फूलों का संसारा

कवि मनीष 
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Tuesday 2 June 2020

रहमत होती है परमेश्वर की उनपे,
करतें हैं जो सबकुछ क़ुर्बान वतन पे,
आग से भरे रस्ते पर भी चल जातें हैं,
जो रखतें हैं भारत माँ को सदा दिल में,

देश तो है बस मिट्टी की सौंद्धि खुशबू,
कर देती है मन को मंत्रमुग्ध,
जब फैलती है हरसूं,
बस वही चमकतें हैं हिंद के नभ में,
जो रखतें हैं भारत माँ को सदा दिल में,

रहमत होती है परमेश्वर की उनपे,
करतें हैं जो सबकुछ क़ुर्बान वतन पे,
आग से भरे रस्ते पर भी चल जातें हैं,
जो रखतें हैं भारत माँ को सदा दिल में 

कवि मनीष 
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Monday 1 June 2020

है जीवन तो राम का और न किसी का,
है जीवन तो भगवान का और न किसी का,
है चलती नाव जीवन की परमात्मा के हीं सागर में,
है जीवन तो श्री राम का और न किसी का 

कवि मनीष 
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...