जीवन है बन जाता उनका गंगा सा निर्मल,
जो जपते हैं गंगाधर का नाम हरपल,
एक लौ है आशा की प्रज्वलित रहती,
जो बसा कर हैं रखते हिर्दय में भोले नाथ को हरपल
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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