Friday 31 January 2020
Tuesday 28 January 2020
है जीवन वो सागर,
जिसमें हैं छिपे अनेक ख़ज़ानें,
कभी ख़ुशी, कभी ग़म,
ये अक़्सर बाँटे,
कभी देता है साहिल,
तो कभी डूबोता है ये बीच मझधार,
कभी देता है काँटे,
तो कभी देता है ये रंगो भरी बहार,
है जीवन वो बाग़,
जो कभी शूल तो कभी पुष्प बाँटे,
है जीवन वो सागर,
जिसमें हैं छिपे अनेक ख़ज़ानें,
कभी ख़ुशी, कभी ग़म,
ये अक़्सर बाँटे
कवि मनीष
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Monday 27 January 2020
है जीवन तो,
एक चलती कश्ती के समान,
कभी आँधी,कभी तूफां,
झेलती एक कश्ती के समान,
है जीवन तो,
एक चलती कश्ती के समान,
कभी मज़े में तो कभी सज़े में,
चलती एक कश्ती के समान,
है जीवन तो,
एक चलती कश्ती के समान,
कभी किनारे से मिलती,
तो कभी मझधार में फँसती,
एक कश्ती के समान,
है जीवन तो,
नीर पे मचलती,
कश्ती के समान,
है जीवन तो,
एक चलती कश्ती के समान,
कभी आँधी,कभी तूफां झेलती,
एक कश्ती के समान,
है जीवन तो,
एक चलती कश्ती के समान
कवि मनीष
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Friday 24 January 2020
Saturday 11 January 2020
जीवन पथ पर बढ़ता चल,
ऐ इंसान तू सत्कर्म करता चल,
राह ए ज़िन्दगी में तो शूलों का चुभना है आम,
तू बहार की ओर बढ़ता चल,
जीवन पथ पर बढ़ता चल,
है तेरा जीवन वो नदि,
जो सूखेगी न कभी,
है तेरा जीवन वो कश्ती,
जो डूबेगी न कभी,
तू साहिल ए ज़िन्दगी की ओर बढ़ता चल,
जीवन पथ पर बढ़ता चल,
तू है वो चट्टान,
जो हिलेगा न कभी,
तू है वो तूफ़ान,
जो थमेगा न कभी,
तू क्षितिज की ओर बढ़ता चल,
जीवन पथ पर बढ़ता चल,
जीवन पथ पर बढ़ता चल,
ऐ इंसान तू सत्कर्म करता चल,
राह ए ज़िन्दगी में तो शूलों का चुभना है आम,
तू बहार की ओर बढ़ता चल,
जीवन पथ पर बढ़ता चल,
जीवन पथ पर बढ़ता चल,
जीवन पथ पर बढ़ता चल
कवि मनीष
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Friday 10 January 2020
Wednesday 8 January 2020
Tuesday 7 January 2020
आग लगी है चारों ओर,
पर करता नहीं कोई गौर,
इन्सान बना है इन्सान का दुश्मन,
इन्सानियत न रहा किसी का सिरमौर,
आज बहती है गंगा सहम,सहमकर,
आज चलता है शैतान तनकर,
आज कहतें सब ईमानदार को चोर,
आज लगी है चारों ओर,
पर करता नहीं कोई गौर,
इन्सान बना है इन्सान का दुश्मन,
इन्सानियत न रहा किसी का सिरमौर
कवि मनीष
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Monday 6 January 2020
कोई नहीं देता सहारा,
सहारा ख़ुद है बनना पड़ता,
है शूलों से भरा अगर रास्ता,
तो स्वयं है चलना पड़ता,
है नभ में तारे अनेक,
पर कोई किसी को रोशन नहीं करता,
अपनीं हस्ती को स्वयं हीं बनाना है पड़ता,
स्वयं रोशन स्वयं हीं है करना पड़ता,
कोई नहीं देता सहारा,
सहारा ख़ुद है बनना पड़ता,
है शूलों से भरा अगर रास्ता,
तो स्वयं है चलना पड़ता
कवि मनीष
Sunday 5 January 2020
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चूमता है अमरत्व मस्तक, उनका जो होतें हैं शहीद मातृभूमि पर, होता है स्वर्णिम जीवन उनका, विजय पताका लहराते हैं जो शत्रु के वक्ष ...
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इठलाती-बलखाती आई मैं, बदरा बन हरसू छाई मैं, मेरे श्याम तेरे मुख को देख, सहसा देख लजाई मैं, तेरे बांसुरी की तान का है क्या कहना, तू हीं तो है...