Tuesday, 28 January 2020

है जीवन वो सागर,
जिसमें हैं छिपे अनेक ख़ज़ानें,
कभी ख़ुशी, कभी ग़म,
ये अक़्सर बाँटे,

कभी देता है साहिल,
तो कभी डूबोता है ये बीच मझधार,
कभी देता है काँटे,
तो कभी देता है ये रंगो भरी बहार,

है जीवन वो बाग़,
जो कभी शूल तो कभी पुष्प बाँटे,

है जीवन वो सागर,
जिसमें हैं छिपे अनेक ख़ज़ानें,
कभी ख़ुशी, कभी ग़म,
ये अक़्सर बाँटे 

कवि मनीष 
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