चूमता है अमरत्व मस्तक,
उनका जो होतें हैं शहीद मातृभूमि पर,
होता है स्वर्णिम जीवन उनका,
विजय पताका लहराते हैं जो शत्रु के वक्ष पर,
अपना सर्वस्व जो कर दे निछावर वतन पर,
जो धड़कता है जीवन बनकर,
जो बहता है लहू बनकर,
वो रहता है हर जुबां पर फ़ौजी बनकर,
चूमता है अमरत्व मस्तक,
उनका जो होतें हैं शहीद मातृभूमि पर,
होता है स्वर्णिम जीवन उनका,
विजय पताका लहरातें हैं जो शत्रु के वक्ष पर
कवि मनीष
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