Tuesday 3 March 2020


चूमता है अमरत्व मस्तक,
उनका जो होतें हैं शहीद मातृभूमि पर,
होता है स्वर्णिम जीवन उनका,
विजय पताका लहराते हैं जो शत्रु के वक्ष पर,

अपना सर्वस्व जो कर दे निछावर वतन पर,
जो धड़कता है जीवन बनकर,
जो बहता है लहू बनकर,
वो रहता है हर जुबां पर फ़ौजी बनकर,

चूमता है अमरत्व मस्तक,
उनका जो होतें हैं शहीद मातृभूमि पर,
होता है स्वर्णिम जीवन उनका,
विजय पताका लहरातें हैं जो शत्रु के वक्ष पर

कवि मनीष 
****************************************

No comments:

Post a Comment

प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...