पूजती है दुनिया उसके चरणों में झुककर,
है रहता चमत्कार उसके हाथों में रूककर,
करूणा से अपनीं वो है सब की ज़िन्दगी संवारता,
है रहता दया का सागर उसकी आँखों में ठहरकर
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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