रात में दिन का अनुभव है होता,
जब हाथ साईं का सर पे है होता,
जल स्वयं मुख में करता नहीं प्रवेश,
मिलती है कृपा जब साईं के दर है कोई जाता
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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