रोती हुई शम्मा नें परवानें से पूछा,
जलाकर तुमको मैंनें दिया धोखा,
पर तुमको फिर भी मुझसे कोई गिला नहीं,
क्या तुमको गुस्सा नहीं है आता,
तब परवानें नें कहा शम्मा से,
मुझको वफ़ा है बेवफ़ा से,
तुमनें डोर ए मुहब्बत को तोड़ डाला,
पर तुम निकाल न सकोगे अब मुझको दिल से,
मैंनें जां देकर तुम्हारे रूह को पा लिया,
अमावस को पूनम बन जला दिया,
अब तुम्हारी नम आँखों में मैं रहूँगा ज़िन्दा हमेशा,
मैंनें पत्थर को मोम बना डाला,
मैं इसलिए मरके भी हूँ ख़ुश होता,
रोती हुई शम्मा नें परवानें से पूछा,
जलाकर तुमको मैंनें दिया धोखा,
पर तुमको फिर भी मुझसे कोई गिला नहीं,
क्या तुमको गुस्सा नहीं है आता
नज़्म
कवि मनीष
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