फटे जेब बाप कभी दिखाता नहीं,
बरसती आँखें बाप कभी दिखाता नहीं,
दिल पत्थर करके वो है रखता,
पर उस पत्थर दिल से नाज़ुक कुछ होता नहीं
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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