Saturday, 13 June 2020

घृणित है ये कार्य बहोत इसका न कोई प्रायश्चित,
पैर तोड़कर मासूमों का वो छीन लेते हैं मंज़िल,
मानवता है दम तोड़ देती उस घड़ी,
जब मजबूरी है भारी पड़ जाती बचपन पर 

कवि मनीष 
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