जीवन के बाग़ का पिता है होता माली,
हर रंग निकलतें हैं जिससे है होता वो,वो पिचकारी,
है पिता वो चमकता सूरज,
जिससे है पलती ज़िन्दगी की फुलवारी
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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