हैं निगाहें आपकी जैसे,
आसमाँ में है चमकता चाँद,
हैं अदाएँ आपकी जैसे,
बादलों में छुपता हुआ चाँद,
हर मौसम देखकर आपको कहता है ये,
है ताज़गी आपकी जैसे,
हर मौसम में छा गया हो बहार,
होंठ हैं आपके जैसे,
कोई हँसता हुआ ग़ुलाब,
बदन है आपकी जैसे,
धरती पे है खड़ा ताज,
हैं निगाहें आपकी जैसे,
आसमाँ में है चमकता चाँद,
हैं अदाएँ आपकी जैसे,
बादलों में छुपता हुआ चाँद
कवि मनीष
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