Tuesday, 16 July 2019

हैं निगाहें आपकी जैसे..

हैं निगाहें आपकी जैसे,
आसमाँ में है चमकता चाँद,
हैं अदाएँ आपकी जैसे,
बादलों में छुपता हुआ चाँद,

हर मौसम देखकर आपको कहता है ये,
है ताज़गी आपकी जैसे,
हर मौसम में छा गया हो बहार,

होंठ हैं आपके जैसे,
कोई हँसता हुआ ग़ुलाब,
बदन है आपकी जैसे,
धरती पे है खड़ा ताज,

हैं निगाहें आपकी जैसे,
आसमाँ में है चमकता चाँद,
हैं अदाएँ आपकी जैसे,
बादलों में छुपता हुआ चाँद 

कवि मनीष 


No comments:

Post a Comment

प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...