हँसती हो तुम तो ऐसा लगता है,
तुम्हारे चेहरे पे हीं तो बहार सजता है,
मैं तो हूँ तुम्हारी हरपल, हरदम के लिए,
तुम्हीं से तो मेरे चेहरे पे निख़ार आता है,
जैसे गंगा जीती है हरपल धरती के लिए,
वैसे हीं मैं जीता हूँ बस तुम्हारे लिए,
तुम्हीं से तो मेरे चेहरे पे निख़ार आता है,
मैं तो हूँ तुम्हारी हरपल, हरदम के लिए,
हँसती हो तुम ऐसा लगता है,
तुम्हारे चेहरे पे हीं तो बहार सजता है,
मैं तो हूँ तुम्हारी हरपल, हरदम के लिए,
तुम्हीं से तो मेरे चेहरे पे निख़ार आता है,
तुम्हीं से तो मेरे चेहरे पे निख़ार आता है,
तुम्हीं से तो मेरे चेहरे पे निख़ार आता है,
तुम्हीं से तो मेरे चेहरे पे निख़ार आता है
कवि मनीष
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