Sunday, 21 July 2019

जिस इन्सान के भीतर..

जिस इन्सान के भीतर इन्सानियत मर जाती है,
उस इन्सान के भीतर रिश्तों की भी एहमियत मर जाती है,
उस इन्सान को जीनें का रह नहीं जाता कोई हक़,
क्योंकि सड़ें अंग को काटकर फेंकनें से हीं जीनें की ताक़त बच पाती है 
कवि मनीष 

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