Wednesday, 31 July 2019

मन में आकाश की ऊँचाई तू..

मन में आकाश की ऊँचाई तू,
रख़ हमेशा,
मन में सागर की गहराई तू,
रख़ हमेशा,

ऐ इन्सान तू डरता है क्या,
आँखों में आशा के दीये तू,
जला के रख़ हमेशा,

मन में आकाश की ऊँचाई तू,
रख़ हमेशा,
मन में सागर की गहराई तू,
रख़ हमेशा,

पाँव थक जाएँ तो,
थोड़ा थम जा जरा,
आँखे अगर थक जाएँ तो,
थोड़ा पलकें झुका,

पर रूकना ना तू,
सदा के लिए,
चलते रहना तू जैसे,
चलती है धरती सदा,

मन में आकाश की ऊँचाई तू,
रख़ हमेशा,
मन में सागर की गहराई तू,
रख़ हमेशा,

मन में आकाश की ऊँचाई तू,
रख़ हमेशा,
मन में सागर की गहराई तू,
रख़ हमेशा 
कवि मनीष 

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