बहारों का आया है पयाम,
हर लमहा अब तो है चाहत के नाम,
उजियारा है ऐसा चारों ओर,
जैसे बादलों से निकल आया हो चाँद,
बहारों का आया है पयाम,
बहारों का आया है पयाम,
हर रात अब तो नूर ए चाँद की जमीं पर है बैठी हुई,
हर बात अब तो चाशनीं में है लिपटी हुई,
अब तो चमन की हर ख़ुशबू कर रही है सलाम,
बहारों का आया है पयाम,
बहारों का आया है पयाम,
हर लमहा अब तो है चाहत के नाम,
उजियारा है ऐसा चारों ओर,
जैसे बादलों से निकल आया हो चाँद,
बहारों का आया है पयाम,
बहारों का आया है पयाम,
बहारों का आया है पयाम,
बहारों का आया है पयाम
कवि मनीष
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