सूरज जब है रंगता अपनें रंग से गगन,
गुलाबी-गुलाबी अम्बर बन जाता है जैसे खिलता चमन,
सुबह-शाम रंग इसका देख,
कभी मुस्कुराता, कभी हँसता है चमन,
ख़ुद को जलाकर ये देता है धरती को जीवन,
देख इसका त्याग धन्य-धन्य हो जाता है तन-मन,
जलता ये सूर्य कहता है हमसे,
तू भी स्वार्थ त्याग मानवता को अपनाकर करले धन्य अपना भी जीवन,
सूरज जब है रंगता अपनें रंग से गगन,
गुलाबी-गुलाबी अम्बर बन जाता है जैसे खिलता चमन,
सुबह-शाम रंग इसका देख,
कभी मुस्कुराता, कभी हँसता है चमन
कवि मनीष
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