कईसे आपन मनवा के हम समझाई हो,
कईसे आपन दिलवा के हम समझाई हो,
सूखल-सूखल होंटवा के,
सूखल-सूखल होंटवा के,
कईसे समझाइ हो,
कईसे आपन मनवा के हम समझाई हो,
कईसे आपन दिलवा के हम समझाई हो,
काहे हमरा छोर के तू,
काहे हमरा छोर के तू,
चल गेला सईंया हमार हो,
कईसे आपन मनवा के हम समझाई हो,
कईसे आपन दिलवा के हम समझाई हो,
जईसे अमावस के रतिया बा,
जईसे अमावस के रतिया बा,
अईसे सगरो छाईल ह अंधार हो,
कईसे आपन मनवा के हम समझाई हो,
कईसे आपन दिलवा के हम समझाई हो,
कईसे आपन मनवा के हम समझाई हो,
कईसे आपन दिलवा के हम समझाई हो
कवि मनीष
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