Saturday, 30 May 2020

है जीवन तो जियो औरों के लिए,
है जीवन तो जियो मानवता के लिए,
करके साईं की भक्ति,
है जीवन तो जियो सभी के लिए 

कवि मनीष

Friday, 29 May 2020

एक दिनभर खेतों में पसीना बहाता है,
एक ख़ून पानी की तरह बहाता है,
है वो जवान और किसान,
धरती का लाल जो कहलाता है,

ख़ून और पसीनें की कीमत पूछो इनसे,
देश की मिट्टी महकती है क्यों,
पूछो इनसे,
हैं ये वो जो भारत को भारत माता हैं बनाते,
देश से है जो करता प्यार बस वही सच्चा कहलाता है,

एक दिनभर खेतों में पसीना बहाता है,
एक ख़ून पानी की तरह बहाता है,
है वो जवान और किसान,
धरती का लाल जो कहलाता है 

कवि मनीष 
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Thursday, 28 May 2020

एक बेग़ैरत मुल्क की बस है यही पहचान,
जलना है हरवक्त देख औरों की शान,
रूह रहती है इनकी गंदगी में सनीं हुई,
जानतें हैं सब, है नाम उसका पाकिस्तान

#कविमनीष 
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Tuesday, 26 May 2020

रात में दिन वहाँ होता है,
जहाँ शिव-शंकर का वास होता है,
वातावरण हर वक्त है होता वहाँ दिव्य,
जहाँ भुजंगधारी का पूजन होता है

कवि मनीष 
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सुबह और शाम एक कर देता है,
ख़ून पसीनें की तरह बहा देता है,
तब एक वक्त की रोटी,
ग़रीब खा पाता है,

है कुदरत का ये इन्साफ गजब,
है निर्धन की झोलीं में दिन कम और रात बहोत,
सारी उम्र निकल जाती है, पता नहीं कैसे,
फटे बनियान और फटे धोती में है, बात बहोत,

हर निर्धन की एक कहानी होती है,
बगैर कुछ पाई हुई जवानी होती है,
गुजर जाती है सदियाँ बस यूँहीं,
उनके अश्कों में जागी हुई रात होती है,

पर केवल बातों से पेट कहाँ भरता है,

सुबह और शाम एक कर देता है,
ख़ून पसीनें की तरह बहा देता है,
तब एक वक्त की रोटी,
ग़रीब खा पाता है 

कवि मनीष 
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Sunday, 24 May 2020

है प्रेम और भाईचारे का संदेश देती,
नफ़रतों को है पल भर में भूला देती,
नफ़रतों पे भी प्रेम सुमन बरसाकर,
है ईद बुराईयों को सदा के लिए सुला देती

कवि मनीष 
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बहारे आनें पर खिल जाती है हर कली,
सूरज के उगनें पर चमक उठती है हर गली,
है आती जो पूनम चमक उठती है रात,
और शिव की भक्ति करनें पर टल जाती है हर विपदा की घड़ी

#कविमनीष 
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Saturday, 23 May 2020

तू मेरा हमसफ़र है,चल साथ मेरे,
तू मेरा हमसफ़र है,चल साथ मेरे,

माना की रास्ता है मुश्किल,
पर तू मेरा हमसफ़र है,चल साथ मेरे,

माना की मंज़िल है दूर,
पर तू मेरा हमसफ़र है,चल साथ मेरे,

माना की सहर की आहट है अभी नहीं,
पर तू मेरा हमसफ़र है,चल साथ मेरे,

माना की स्याह रातें डराएँगी,
पर तू मेरा हमसफ़र है,चल साथ मेरे,

एक दिन तस्वीर ज़रूर बदल जाएगी,
तू मेरा हमसफ़र है,चल साथ मेरे,

तू मेरा हमसफ़र है,चल साथ मेरे,
तू मेरा हमसफ़र है,चल साथ मेरे 

#कविमनीष 
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Friday, 22 May 2020

क़फ़न जलनें से पहले जल गई थी लाश,
चिता जलनें से पहले जल गई थी लाश,
बहोत कुछ करना था अभी वतन के लिए,
पर पहुँच न सकी दुआ जीवन की उसके पास

कवि मनीष 
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Wednesday, 20 May 2020

मीरा कहे कृष्ण से,
क्या मिला मोहे,
एक को मिला प्रेम,
और विष मिला मुझे,

मीरा कहे कृष्ण से,

कहे है ये अम्बर,
कहे है धरती,
रात-दिन जागकर,

प्रेम में तेरे बनीं बैरागन,
फूंक दिया मैंनें अपना मधुवन,

एक सूखे पात जैसा,
त्याग दिया मोहे,
मीरा कहे कृष्ण से,
क्या मिला मोहे,

मेरे जीवन की कश्ती,
फिर भी लग गई पार,
पर तेरे प्रेम की नईया,
को न मिली पतवार,

कृष्ण-राधा एक कहलाएँ,
पर हुए न कभी एक,
मैं तो विष पीकर भी,
हो गई तेरी देख,

मीरा कहे कृष्ण से,

तेरे नाम का वो विष भी,
था अमृत मेरे लिए,
तेरे नाम का वो विष भी,
था अमृत मेरे लिए,

मीरा कहे कृष्ण से,

मीरा कहे कृष्ण से,
क्या मिला मोहे,
एक को मिला प्रेम,
और विष मिला मुझे 

कवि मनीष 
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Tuesday, 19 May 2020

कई रात जाग कर हैं काट रहे,
फिर भी हम हीं पे पत्थर हैं बरस रहे,
जिनको हम हैं आए बचानें के ख़ातिर,
वही हम पर हैं थूक रहे,

हर क्षण हैं कर रहें क़ुर्बान,
वतन के ख़ातिर,
दे रहें हैं जान,
वतन के ख़ातिर,

अपनें प्राण देकर,
न जानें कितनों के हैं प्राण बचा रहे,
कुछ हैं बरसा रहे फूल,
तो कुछ पत्थर हैं बरसा रहे,

अपनों से दूर रहकर,
हिर्दय पर पत्थर रखकर,
गैरों को अपना हैं बना रहे,
कई रात जाग कर हैं काट रहे,

हम तो हैं निभा रहें अपना फ़र्ज़,
पर आप अपना फ़र्ज़,
कहाँ हैं निभा रहे,
जो कर रहें आपकी रक्षा,
उसी से आप हैं भाग रहे,

है जो ये आपदा आन पड़ी,
बस उसी से तो बचनें को हम हैं कह रहे,
अगर फिर भी आ जाए जो आप पे ये मुसीबत,
तो हम तो हैं हीं खड़े हुए,

हमसे आप न भागें दूर,
बस हम तो यहीं हैं कह रहे,
कई रात जाग कर हैं काट रहे,
फिर भी हम हीं पे पत्थर हैं बरस रहे,

कई रात जाग कर हैं काट रहे,
फिर भी हम हीं पे पत्थर हैं बरस रहे,
जिनको हम हैं आए बचानें के ख़ातिर 
वही हमपर हैं थूक रहे 

कवि मनीष 
है कहीं रात,
तो कहीं दिन,
है उगता सूरज,
और ढ़लता भी,

और पहिया जीवन का,
है चलता हीं,
है कठिनाईयों का दौर आता,
तो जाता भी,

जो हैं करते शूलों को भी
सहर्ष स्वीकार,
बहार उनको मिलता हीं,

है जीवन एक विशाल पर्वत,
हर किसी को है,
इसपे चढ़ना हीं,
जो हैं डरतें इससे,
मौत को निगलता हीं,

है कहीं रात,
तो कहीं दिन,
है उगता सूरज,
और ढ़लता भी

कवि मनीष 
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Monday, 18 May 2020

हमारे देश में ऐसे पुलिस वाले भी होतें हैं,
भर्ती होनें से पहले तोंद अंदर,
फिर बाहर होतें हैं,
हमारे देश में ऐसे पुलिस वाले भी होतें हैं,

चोर जब भरतें हैं फर्राटे,
तब ये अपनीं पतलून संभालतें हैं,
अपराधी होतें हैं 50कि.मी. प्रति घंटे पर,
और ये 10 कि.मी. प्रति घंटे पर होतें हैं,
हमारे देश में ऐसे पुलिस वाले भी होतें हैं,

इनकी शारीरिक बनावट को देखकर
है ऐसा लगता,
जैसे इन्होंनें भीतर अपनें भण्डारा लगाके है रखा, 
सोना तो जैसे है इनका जन्मसिद्ध अधिकार,
ये तो नींद के समन्दर में होतें हैं,
हमारे देश में ऐसे पुलिस वाले भी होतें हैं,

हमारे देश में ऐसे पुलिस वाले भी होतें हैं,
भर्ती होनें से पहले तोंद अंदर,
फिर बाहर होतें हैं,
हमारे देश में ऐसे पुलिस वाले भी होतें हैं 

कवि मनीष 
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Sunday, 17 May 2020

प्रेम और शांति का है बसेरा,
जहाँ है होता माता का सवेरा,
अंधकार में प्रकाश है जो देती,
है माता तेरा नूर कुछ ऐसा,

जब कुछ सूझता नहीं,
तब सूझती है तू,
जीवन के सागर में मिली,
एक अद्भुत मिठास है तू,

कर दे ख़ारे को भी मधुर,
ऐसा प्रेम है तेरा,
प्रेम और शांति का है बसेरा,
जहाँ है होता माता का सवेरा,

प्रेम और शांति का है बसेरा,
जहाँ है होता माता का सवेरा,
अंधकार में प्रकाश है जो देती,
है माता तेरा नूर कुछ ऐसा 

कवि मनीष 
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Saturday, 16 May 2020

माँ लक्ष्मीं वंदना
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अपनीं कृपा बरसाकर,
धन्य-धान्य सबको देकर,
निर्धनता तुम भगाते रहना,
हे माता लक्ष्मीं हमारे घर तुम विराजे रहना,

निर्धनता है वो कलंक,
जिसे छुड़ाना है बड़ा मुश्किल,
किसी के ऊपर ये कलंक तुम न लगाना,
हे माता लक्ष्मीं हमारे घर तुम विराजे रहना,

जब आता है वसंत हर कली है खिल जाती,
तुम हमारे अरमानों को ऐसे हीं खिलाते रहना,
सदा अपना हाथ सर पे हमारे रखे रहना,
हे माता लक्ष्मीं हमारे घर तुम विराजे रहना,

अपनीं कृपा बरसाकर,
धन-धान्य सबको देकर,
निर्धनता तुम भगाते रहना,
हे माता लक्ष्मीं हमारे घर तुम विराजे रहना 

कवि मनीष 
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Friday, 15 May 2020

हैं हाँथ-पाँव कटे फिर भी चल रहे हैं,
जिस्म हो चुकी है लाश फिर भी चल रहे हैं,
हमनें हीं तो है बनाया हिन्दुस्तान,
पर हमारे आँसू आज नालों में बह रहें हैं

ग़रीबों के क़फ़न से ख़ुशबू आती नहीं,
हमसे सस्ती मौत किसी की होती नहीं,
तू है क्या,तेरी औक़ात क्या,
हम न जो बहाते पसीना,रोटी तेरी बनती नहीं,

बीमारी से हम मरेंगे क्या,
हम तो भूख से मर रहें हैं,
हमारे रोग का भी तो करो इलाज,
हम तो बस यही कह रहें हैं,

हैं हाँथ-पाँव कटे फिर भी चल रहे हैं,
जिस्म हो चुकी है लाश फिर भी चल रहे हैं,
हमनें हीं तो है बनाया हिन्दुस्तान,
पर हमारे आँसू आज नालों में बह रहें हैं 

कवि मनीष 
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Wednesday, 13 May 2020

रात और दिन जब तक रहे,
आशाओं के दीप जले,
मैं रहूँगा सदा तेरे साथ,
ये साईं कहे,

गगन में जब तक चाँद,सूरज,सितारे रहे,
हर मन में करूणा के फूल खिले,
तेरे सर पे सदा रहेगा मेरा हाथ,
ये साईं कहे,

कैसा ये अद्भुत रिश्ता है,
मानव,आत्मा,परमात्मा एकदूसरे से जुड़कर,
बनाते जीवन गगन रंग-बिरंगा है,
तेरे हाथों में रहेगा सदा मेरा हाथ,
ये साईं कहे,

रात और दिन जब तक रहे,
आशाओं के दीप जले,
मैं रहूँगा सदा तेरे साथ,
ये साईं कहे 

कवि मनीष 
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Tuesday, 12 May 2020

हे राम के भक्त हनुमान,
तुम्हारी जय हो,
हे संकट मोचन भगवान,
तुम्हारी जय हो,

समस्त सृष्टि में में शक्ति और ज्ञान की,
गंगा बहानें वाले,
तुम्हारी जय हो,

है वो ताक़त तुझमें,
समस्त सृष्टि समा जाए तुझमें,
है महेश्वर अवतारी,
तुम्हारी जय हो,

हे राम भक्त हनुमान,
तुम्हारी जय हो,
हे संकट मोचन भगवान,
तुम्हारी जय हो 

कवि मनीष 
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Monday, 11 May 2020

आज है वो दिन जब हमनें दिखलाई अपनीं वो ताक़त जग को,
जिसनें एक अद्वितीय क्रांति लाकर महाशक्तिशाली बनाया देश को,
आज हमनें दिखला दिया, हमारे लिए नामुमकिन कुछ भी नहीं,
आज हमनें अपनीं चमक से चकाचौंध कर दिया सारे जग को

आज के दिन डाॅ. ऐ.पी.जे. अब्दुल कलाम एवम् श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के अथक प्रयासों के कारण भारत परमाणु संपन्न राष्ट्र बना ।

आप सभी को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस की अनंत शुभकामनाएँ ।

कवि मनीष 
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Sunday, 10 May 2020

जीवन को जन्म देनें वाली,
जीवन बाग बनानें वाली,
जीवन को सजाकर,
चेहरे पे हँसी लानें वाली,

माता तुझे प्रणाम,
माता तुझे सलाम,
सच्च-झूठ को मिलाकर,
घर को बसानें वाली,

हे जननी तुझे प्रणाम,
हे माता तुझे सलाम,
हे माता तुझे प्रणाम,
हे माता तुझे सलाम 

कवि मनीष 
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Saturday, 9 May 2020

रात को दिन करनें की ताक़त है जिसमें,
ऐसा वीर पैदा हुआ न कभी जग में,
है जो महास्वाभिमान,महावीरता की पराकाष्ठा,
कहतें हैं महाराणा प्रताप उसे जग में 

कवि मनीष 
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Friday, 8 May 2020

जब है आती रात अमावस की कुछ सूझता नहीं,
कहाँ छुपी है पूनम ये दिखता नहीं,
इन्सान की ग़लती की सज़ा हर कोई है भुगतता,
पर इन्सान को तो अपनें स्वार्थ के आगे कुछ दिखता नहीं 

#विशाखापत्तनमगैसलीक
#कविमनीष 
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Thursday, 7 May 2020

ज्ञान और शांति का उपदेश देनेंवाले,
युद्ध के मार्ग से जग को बचानेंवाले,
है आज उसके जन्म,ज्ञान,महानिर्वाण तीनों का संगम,
है पाता वो परमशांति को जो करता है सर्वस्व अपना बुद्ध के हवाले

बुद्ध पूर्णिमा की ढ़ेरों शुभकामनाएँ 
कवि मनीष 
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Wednesday, 6 May 2020

मच्छर



गुनगुनाते,भनभनाते ये मच्छर,
पंखों को हिला हिलाकर,
कोई धुन सुनाते ये मच्छर,

काटते इधर-उधर,
मंडरा-मंडारकर सताते दिन भर,
ख़ून पी पीकर बीमारियाँ फैलातें,
बग़ैर उपाय के नहीं भागतें,

ये कैसा कीड़ा बनाया ऊपरवाले नें,
हिर्दय में तनिक भी दया न जिसके,
कह रहा हर जीव ये
चीख़,चीख़कर,

गुनगुनाते,भनभनाते ये मच्छर,
पंखों को हिला हिलाकर,
कोई धुन सुनाते ये मच्छर

कवि मनीष 
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Tuesday, 5 May 2020

कतार लगती है जब,
शराब की दुकानों पर,
तो समझ जाओ,
अमृत है बिक रही मयख़ानें पर,

लोग समझतें हैं,
है ये चीज़ बुरी,
तो क्यों लोग हैं बेचैन,
इसे लेनें पर,

अगर दूध की दुकानों पर भी,
सरकार लगा दे ताला,
और दे उसे भी छूट,
शराब वाला,

तब दूध के दुकानों पर भी,
दिखेगी तुमको यही मारामारी,
वहाँ भी दिखेगी तुमको,
यही बेचैनीं,

चीज़ अच्छी हो या बुरी,
अगर आप उसका,
करते हैं अतिसेवन,
तभी वो देता है,
आपको मृत्यु का धरातल,

तो हर चीज़,
लो संयम से,
तभी वो होगी आपके ख़ातिर,
न अमृत से कमतर,

कतार लगती है जब,
शराब की दुकानों पर,
तो समझ जाओ,
अमृत है बिक रही मयख़ाने पर

कवि मनीष 
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Monday, 4 May 2020

प्रेम की पुकार आई,
जब कृष्ण नें बंसी बजाई,
राधा दौड़ी चली आई,
जब कृष्ण नें बंसी बजाई,

राधा-कृष्ण का प्रेम उपवन,
है सच्चे प्रेम का मधुवन,
सारे जग पे,
सावन की घटा छाई,

प्रेम की पुकार आई,
जब कृष्ण नें बंसी बजाई,
राधा दौड़ी चली आई,
जब कृष्ण नें बंसी बजाई 

कवि मनीष 
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Sunday, 3 May 2020

हँसना,हँसाना है, जीवन का अनमोल उपहार,
ये तो है, जीवन का अनुपम श्रृंगार,
हँसनें-हँसानें बग़ैर जीवन में वसंत आता नहीं,
बग़ैर इसके है नहीं होता जीवन में चमत्कार,

ये है जीवन का ऐसा रंग,
जो है जीवन में लाता उमंग,
इससे हीं है पूरा होता जीवन सरगम,
यही है बरसाता हर चेहरे पर खुशियों की बौछार,

हँसना-हँसाना है, जीवन का अनमोल उपहार,
ये तो है जीवन का अनुपम श्रृंगार,
हँसनें-हँसानें बग़ैर जीवन में वसंत आता नहीं,
बग़ैर इसके है नहीं होता जीवन में चमत्कार 

कवि मनीष 
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Saturday, 2 May 2020

सवेरे की लाली है होती जैसे,
है मेरी माता का मुखड़ा वैसे,
इसको देख झूम कर है आती बहार,
सारे जग पर है हो जाता वसंत का श्रृंगार,

ख़िलतीं हैं कलियाँ तुझको देखकर,
तेरे साथ आता है सावन झूम झूमकर,
तेरी अनुकंपा है बरसती ऐसे,
पूनम में चाँदनीं बरसती है जैसे,

सवेरे की लाली है होती जैसे,
है मेरी माता का मुखड़ा वैसे,
इसको देख झूम कर है आती बहार,
सारे जग पे है हो जाता वसंत का श्रृंगार

कवि मनीष
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Friday, 1 May 2020


चार पैसों की ख़ातिर,
जो हैं हो जातें मरनें को मजबूर,
हैं कहलाते वो मजदूर,

हर युग में मजदूर,
सड़क पे है आता,
प्रशासन है सबकी ख़बर रखता,
पर केवल मजदूर हीं है इधर-उधर भटकता,

आज भी मजदूरों की है यही हालत,
कल भी रहेगी,
और हमेशा रहेगी,

कोई सड़क पे पड़ा,
गाड़ियों के है नीचे आता,
कोई अपनों को मिलनें की ख़ातिर,
दिन-रात है आँसू बहाता,

पर वो जीवन का सूरज,
होता नहीं सामनें उनके कभी हाज़िर,

चार पैसों की ख़ातिर,
जो हैं हो जातें मरनें को मजबूर,
हैं कहलातें वो मजदूर

कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...