कवि मनीष
Sunday, 31 May 2020
Saturday, 30 May 2020
Friday, 29 May 2020
एक दिनभर खेतों में पसीना बहाता है,
एक ख़ून पानी की तरह बहाता है,
है वो जवान और किसान,
धरती का लाल जो कहलाता है,
ख़ून और पसीनें की कीमत पूछो इनसे,
देश की मिट्टी महकती है क्यों,
पूछो इनसे,
हैं ये वो जो भारत को भारत माता हैं बनाते,
देश से है जो करता प्यार बस वही सच्चा कहलाता है,
एक दिनभर खेतों में पसीना बहाता है,
एक ख़ून पानी की तरह बहाता है,
है वो जवान और किसान,
धरती का लाल जो कहलाता है
कवि मनीष
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Thursday, 28 May 2020
Tuesday, 26 May 2020
सुबह और शाम एक कर देता है,
ख़ून पसीनें की तरह बहा देता है,
तब एक वक्त की रोटी,
ग़रीब खा पाता है,
है कुदरत का ये इन्साफ गजब,
है निर्धन की झोलीं में दिन कम और रात बहोत,
सारी उम्र निकल जाती है, पता नहीं कैसे,
फटे बनियान और फटे धोती में है, बात बहोत,
हर निर्धन की एक कहानी होती है,
बगैर कुछ पाई हुई जवानी होती है,
गुजर जाती है सदियाँ बस यूँहीं,
उनके अश्कों में जागी हुई रात होती है,
पर केवल बातों से पेट कहाँ भरता है,
सुबह और शाम एक कर देता है,
ख़ून पसीनें की तरह बहा देता है,
तब एक वक्त की रोटी,
ग़रीब खा पाता है
कवि मनीष
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Sunday, 24 May 2020
Saturday, 23 May 2020
तू मेरा हमसफ़र है,चल साथ मेरे,
तू मेरा हमसफ़र है,चल साथ मेरे,
माना की रास्ता है मुश्किल,
पर तू मेरा हमसफ़र है,चल साथ मेरे,
माना की मंज़िल है दूर,
पर तू मेरा हमसफ़र है,चल साथ मेरे,
माना की सहर की आहट है अभी नहीं,
पर तू मेरा हमसफ़र है,चल साथ मेरे,
माना की स्याह रातें डराएँगी,
पर तू मेरा हमसफ़र है,चल साथ मेरे,
एक दिन तस्वीर ज़रूर बदल जाएगी,
तू मेरा हमसफ़र है,चल साथ मेरे,
तू मेरा हमसफ़र है,चल साथ मेरे,
तू मेरा हमसफ़र है,चल साथ मेरे
#कविमनीष
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Friday, 22 May 2020
Wednesday, 20 May 2020
मीरा कहे कृष्ण से,
क्या मिला मोहे,
एक को मिला प्रेम,
और विष मिला मुझे,
मीरा कहे कृष्ण से,
कहे है ये अम्बर,
कहे है धरती,
रात-दिन जागकर,
प्रेम में तेरे बनीं बैरागन,
फूंक दिया मैंनें अपना मधुवन,
एक सूखे पात जैसा,
त्याग दिया मोहे,
मीरा कहे कृष्ण से,
क्या मिला मोहे,
मेरे जीवन की कश्ती,
फिर भी लग गई पार,
पर तेरे प्रेम की नईया,
को न मिली पतवार,
कृष्ण-राधा एक कहलाएँ,
पर हुए न कभी एक,
मैं तो विष पीकर भी,
हो गई तेरी देख,
मीरा कहे कृष्ण से,
तेरे नाम का वो विष भी,
था अमृत मेरे लिए,
तेरे नाम का वो विष भी,
था अमृत मेरे लिए,
मीरा कहे कृष्ण से,
मीरा कहे कृष्ण से,
क्या मिला मोहे,
एक को मिला प्रेम,
और विष मिला मुझे
कवि मनीष
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Tuesday, 19 May 2020
कई रात जाग कर हैं काट रहे,
फिर भी हम हीं पे पत्थर हैं बरस रहे,
जिनको हम हैं आए बचानें के ख़ातिर,
वही हम पर हैं थूक रहे,
हर क्षण हैं कर रहें क़ुर्बान,
वतन के ख़ातिर,
दे रहें हैं जान,
वतन के ख़ातिर,
अपनें प्राण देकर,
न जानें कितनों के हैं प्राण बचा रहे,
कुछ हैं बरसा रहे फूल,
तो कुछ पत्थर हैं बरसा रहे,
अपनों से दूर रहकर,
हिर्दय पर पत्थर रखकर,
गैरों को अपना हैं बना रहे,
कई रात जाग कर हैं काट रहे,
हम तो हैं निभा रहें अपना फ़र्ज़,
पर आप अपना फ़र्ज़,
कहाँ हैं निभा रहे,
जो कर रहें आपकी रक्षा,
उसी से आप हैं भाग रहे,
है जो ये आपदा आन पड़ी,
बस उसी से तो बचनें को हम हैं कह रहे,
अगर फिर भी आ जाए जो आप पे ये मुसीबत,
तो हम तो हैं हीं खड़े हुए,
हमसे आप न भागें दूर,
बस हम तो यहीं हैं कह रहे,
कई रात जाग कर हैं काट रहे,
फिर भी हम हीं पे पत्थर हैं बरस रहे,
कई रात जाग कर हैं काट रहे,
फिर भी हम हीं पे पत्थर हैं बरस रहे,
जिनको हम हैं आए बचानें के ख़ातिर
वही हमपर हैं थूक रहे
कवि मनीष
है कहीं रात,
तो कहीं दिन,
है उगता सूरज,
और ढ़लता भी,
और पहिया जीवन का,
है चलता हीं,
है कठिनाईयों का दौर आता,
तो जाता भी,
जो हैं करते शूलों को भी
सहर्ष स्वीकार,
बहार उनको मिलता हीं,
है जीवन एक विशाल पर्वत,
हर किसी को है,
इसपे चढ़ना हीं,
जो हैं डरतें इससे,
मौत को निगलता हीं,
है कहीं रात,
तो कहीं दिन,
है उगता सूरज,
और ढ़लता भी
कवि मनीष
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Monday, 18 May 2020
हमारे देश में ऐसे पुलिस वाले भी होतें हैं,
भर्ती होनें से पहले तोंद अंदर,
फिर बाहर होतें हैं,
हमारे देश में ऐसे पुलिस वाले भी होतें हैं,
चोर जब भरतें हैं फर्राटे,
तब ये अपनीं पतलून संभालतें हैं,
अपराधी होतें हैं 50कि.मी. प्रति घंटे पर,
और ये 10 कि.मी. प्रति घंटे पर होतें हैं,
हमारे देश में ऐसे पुलिस वाले भी होतें हैं,
इनकी शारीरिक बनावट को देखकर
है ऐसा लगता,
जैसे इन्होंनें भीतर अपनें भण्डारा लगाके है रखा,
सोना तो जैसे है इनका जन्मसिद्ध अधिकार,
ये तो नींद के समन्दर में होतें हैं,
हमारे देश में ऐसे पुलिस वाले भी होतें हैं,
हमारे देश में ऐसे पुलिस वाले भी होतें हैं,
भर्ती होनें से पहले तोंद अंदर,
फिर बाहर होतें हैं,
हमारे देश में ऐसे पुलिस वाले भी होतें हैं
कवि मनीष
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Sunday, 17 May 2020
प्रेम और शांति का है बसेरा,
जहाँ है होता माता का सवेरा,
अंधकार में प्रकाश है जो देती,
है माता तेरा नूर कुछ ऐसा,
जब कुछ सूझता नहीं,
तब सूझती है तू,
जीवन के सागर में मिली,
एक अद्भुत मिठास है तू,
कर दे ख़ारे को भी मधुर,
ऐसा प्रेम है तेरा,
प्रेम और शांति का है बसेरा,
जहाँ है होता माता का सवेरा,
प्रेम और शांति का है बसेरा,
जहाँ है होता माता का सवेरा,
अंधकार में प्रकाश है जो देती,
है माता तेरा नूर कुछ ऐसा
कवि मनीष
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Saturday, 16 May 2020
माँ लक्ष्मीं वंदना
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अपनीं कृपा बरसाकर,
धन्य-धान्य सबको देकर,
निर्धनता तुम भगाते रहना,
हे माता लक्ष्मीं हमारे घर तुम विराजे रहना,
निर्धनता है वो कलंक,
जिसे छुड़ाना है बड़ा मुश्किल,
किसी के ऊपर ये कलंक तुम न लगाना,
हे माता लक्ष्मीं हमारे घर तुम विराजे रहना,
जब आता है वसंत हर कली है खिल जाती,
तुम हमारे अरमानों को ऐसे हीं खिलाते रहना,
सदा अपना हाथ सर पे हमारे रखे रहना,
हे माता लक्ष्मीं हमारे घर तुम विराजे रहना,
अपनीं कृपा बरसाकर,
धन-धान्य सबको देकर,
निर्धनता तुम भगाते रहना,
हे माता लक्ष्मीं हमारे घर तुम विराजे रहना
कवि मनीष
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Friday, 15 May 2020
हैं हाँथ-पाँव कटे फिर भी चल रहे हैं,
जिस्म हो चुकी है लाश फिर भी चल रहे हैं,
हमनें हीं तो है बनाया हिन्दुस्तान,
पर हमारे आँसू आज नालों में बह रहें हैं
ग़रीबों के क़फ़न से ख़ुशबू आती नहीं,
हमसे सस्ती मौत किसी की होती नहीं,
तू है क्या,तेरी औक़ात क्या,
हम न जो बहाते पसीना,रोटी तेरी बनती नहीं,
बीमारी से हम मरेंगे क्या,
हम तो भूख से मर रहें हैं,
हमारे रोग का भी तो करो इलाज,
हम तो बस यही कह रहें हैं,
हैं हाँथ-पाँव कटे फिर भी चल रहे हैं,
जिस्म हो चुकी है लाश फिर भी चल रहे हैं,
हमनें हीं तो है बनाया हिन्दुस्तान,
पर हमारे आँसू आज नालों में बह रहें हैं
कवि मनीष
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Thursday, 14 May 2020
Wednesday, 13 May 2020
रात और दिन जब तक रहे,
आशाओं के दीप जले,
मैं रहूँगा सदा तेरे साथ,
ये साईं कहे,
गगन में जब तक चाँद,सूरज,सितारे रहे,
हर मन में करूणा के फूल खिले,
तेरे सर पे सदा रहेगा मेरा हाथ,
ये साईं कहे,
कैसा ये अद्भुत रिश्ता है,
मानव,आत्मा,परमात्मा एकदूसरे से जुड़कर,
बनाते जीवन गगन रंग-बिरंगा है,
तेरे हाथों में रहेगा सदा मेरा हाथ,
ये साईं कहे,
रात और दिन जब तक रहे,
आशाओं के दीप जले,
मैं रहूँगा सदा तेरे साथ,
ये साईं कहे
कवि मनीष
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Tuesday, 12 May 2020
हे राम के भक्त हनुमान,
तुम्हारी जय हो,
हे संकट मोचन भगवान,
तुम्हारी जय हो,
समस्त सृष्टि में में शक्ति और ज्ञान की,
गंगा बहानें वाले,
तुम्हारी जय हो,
है वो ताक़त तुझमें,
समस्त सृष्टि समा जाए तुझमें,
है महेश्वर अवतारी,
तुम्हारी जय हो,
हे राम भक्त हनुमान,
तुम्हारी जय हो,
हे संकट मोचन भगवान,
तुम्हारी जय हो
कवि मनीष
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Monday, 11 May 2020
आज है वो दिन जब हमनें दिखलाई अपनीं वो ताक़त जग को,
जिसनें एक अद्वितीय क्रांति लाकर महाशक्तिशाली बनाया देश को,
आज हमनें दिखला दिया, हमारे लिए नामुमकिन कुछ भी नहीं,
आज हमनें अपनीं चमक से चकाचौंध कर दिया सारे जग को
आज के दिन डाॅ. ऐ.पी.जे. अब्दुल कलाम एवम् श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के अथक प्रयासों के कारण भारत परमाणु संपन्न राष्ट्र बना ।
आप सभी को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस की अनंत शुभकामनाएँ ।
कवि मनीष
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Sunday, 10 May 2020
Saturday, 9 May 2020
Friday, 8 May 2020
Wednesday, 6 May 2020
मच्छर
गुनगुनाते,भनभनाते ये मच्छर,
पंखों को हिला हिलाकर,
कोई धुन सुनाते ये मच्छर,
काटते इधर-उधर,
मंडरा-मंडारकर सताते दिन भर,
ख़ून पी पीकर बीमारियाँ फैलातें,
बग़ैर उपाय के नहीं भागतें,
ये कैसा कीड़ा बनाया ऊपरवाले नें,
हिर्दय में तनिक भी दया न जिसके,
गुनगुनाते,भनभनाते ये मच्छर,
पंखों को हिला हिलाकर,
कोई धुन सुनाते ये मच्छर
कवि मनीष
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Tuesday, 5 May 2020
कतार लगती है जब,
शराब की दुकानों पर,
तो समझ जाओ,
अमृत है बिक रही मयख़ानें पर,
लोग समझतें हैं,
है ये चीज़ बुरी,
तो क्यों लोग हैं बेचैन,
इसे लेनें पर,
अगर दूध की दुकानों पर भी,
सरकार लगा दे ताला,
और दे उसे भी छूट,
शराब वाला,
तब दूध के दुकानों पर भी,
दिखेगी तुमको यही मारामारी,
वहाँ भी दिखेगी तुमको,
यही बेचैनीं,
चीज़ अच्छी हो या बुरी,
अगर आप उसका,
करते हैं अतिसेवन,
तभी वो देता है,
आपको मृत्यु का धरातल,
तो हर चीज़,
लो संयम से,
तभी वो होगी आपके ख़ातिर,
न अमृत से कमतर,
कतार लगती है जब,
शराब की दुकानों पर,
तो समझ जाओ,
अमृत है बिक रही मयख़ाने पर
कवि मनीष
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Monday, 4 May 2020
Sunday, 3 May 2020
हँसना,हँसाना है, जीवन का अनमोल उपहार,
ये तो है, जीवन का अनुपम श्रृंगार,
हँसनें-हँसानें बग़ैर जीवन में वसंत आता नहीं,
बग़ैर इसके है नहीं होता जीवन में चमत्कार,
ये है जीवन का ऐसा रंग,
जो है जीवन में लाता उमंग,
इससे हीं है पूरा होता जीवन सरगम,
यही है बरसाता हर चेहरे पर खुशियों की बौछार,
हँसना-हँसाना है, जीवन का अनमोल उपहार,
ये तो है जीवन का अनुपम श्रृंगार,
हँसनें-हँसानें बग़ैर जीवन में वसंत आता नहीं,
बग़ैर इसके है नहीं होता जीवन में चमत्कार
कवि मनीष
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Saturday, 2 May 2020
सवेरे की लाली है होती जैसे,
है मेरी माता का मुखड़ा वैसे,
इसको देख झूम कर है आती बहार,
सारे जग पर है हो जाता वसंत का श्रृंगार,
ख़िलतीं हैं कलियाँ तुझको देखकर,
तेरे साथ आता है सावन झूम झूमकर,
तेरी अनुकंपा है बरसती ऐसे,
पूनम में चाँदनीं बरसती है जैसे,
सवेरे की लाली है होती जैसे,
है मेरी माता का मुखड़ा वैसे,
इसको देख झूम कर है आती बहार,
सारे जग पे है हो जाता वसंत का श्रृंगार
कवि मनीष
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है मेरी माता का मुखड़ा वैसे,
इसको देख झूम कर है आती बहार,
सारे जग पर है हो जाता वसंत का श्रृंगार,
ख़िलतीं हैं कलियाँ तुझको देखकर,
तेरे साथ आता है सावन झूम झूमकर,
तेरी अनुकंपा है बरसती ऐसे,
पूनम में चाँदनीं बरसती है जैसे,
सवेरे की लाली है होती जैसे,
है मेरी माता का मुखड़ा वैसे,
इसको देख झूम कर है आती बहार,
सारे जग पे है हो जाता वसंत का श्रृंगार
कवि मनीष
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Friday, 1 May 2020
चार पैसों की ख़ातिर,
जो हैं हो जातें मरनें को मजबूर,
हैं कहलाते वो मजदूर,
हर युग में मजदूर,
सड़क पे है आता,
प्रशासन है सबकी ख़बर रखता,
पर केवल मजदूर हीं है इधर-उधर भटकता,
आज भी मजदूरों की है यही हालत,
कल भी रहेगी,
और हमेशा रहेगी,
कोई सड़क पे पड़ा,
गाड़ियों के है नीचे आता,
कोई अपनों को मिलनें की ख़ातिर,
दिन-रात है आँसू बहाता,
पर वो जीवन का सूरज,
होता नहीं सामनें उनके कभी हाज़िर,
चार पैसों की ख़ातिर,
जो हैं हो जातें मरनें को मजबूर,
हैं कहलातें वो मजदूर
कवि मनीष
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