मीरा कहे कृष्ण से,
क्या मिला मोहे,
एक को मिला प्रेम,
और विष मिला मुझे,
मीरा कहे कृष्ण से,
कहे है ये अम्बर,
कहे है धरती,
रात-दिन जागकर,
प्रेम में तेरे बनीं बैरागन,
फूंक दिया मैंनें अपना मधुवन,
एक सूखे पात जैसा,
त्याग दिया मोहे,
मीरा कहे कृष्ण से,
क्या मिला मोहे,
मेरे जीवन की कश्ती,
फिर भी लग गई पार,
पर तेरे प्रेम की नईया,
को न मिली पतवार,
कृष्ण-राधा एक कहलाएँ,
पर हुए न कभी एक,
मैं तो विष पीकर भी,
हो गई तेरी देख,
मीरा कहे कृष्ण से,
तेरे नाम का वो विष भी,
था अमृत मेरे लिए,
तेरे नाम का वो विष भी,
था अमृत मेरे लिए,
मीरा कहे कृष्ण से,
मीरा कहे कृष्ण से,
क्या मिला मोहे,
एक को मिला प्रेम,
और विष मिला मुझे
कवि मनीष
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