कतार लगती है जब,
शराब की दुकानों पर,
तो समझ जाओ,
अमृत है बिक रही मयख़ानें पर,
लोग समझतें हैं,
है ये चीज़ बुरी,
तो क्यों लोग हैं बेचैन,
इसे लेनें पर,
अगर दूध की दुकानों पर भी,
सरकार लगा दे ताला,
और दे उसे भी छूट,
शराब वाला,
तब दूध के दुकानों पर भी,
दिखेगी तुमको यही मारामारी,
वहाँ भी दिखेगी तुमको,
यही बेचैनीं,
चीज़ अच्छी हो या बुरी,
अगर आप उसका,
करते हैं अतिसेवन,
तभी वो देता है,
आपको मृत्यु का धरातल,
तो हर चीज़,
लो संयम से,
तभी वो होगी आपके ख़ातिर,
न अमृत से कमतर,
कतार लगती है जब,
शराब की दुकानों पर,
तो समझ जाओ,
अमृत है बिक रही मयख़ाने पर
कवि मनीष
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