सवेरे की लाली है होती जैसे,
है मेरी माता का मुखड़ा वैसे,
इसको देख झूम कर है आती बहार,
सारे जग पर है हो जाता वसंत का श्रृंगार,
ख़िलतीं हैं कलियाँ तुझको देखकर,
तेरे साथ आता है सावन झूम झूमकर,
तेरी अनुकंपा है बरसती ऐसे,
पूनम में चाँदनीं बरसती है जैसे,
सवेरे की लाली है होती जैसे,
है मेरी माता का मुखड़ा वैसे,
इसको देख झूम कर है आती बहार,
सारे जग पे है हो जाता वसंत का श्रृंगार
कवि मनीष
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है मेरी माता का मुखड़ा वैसे,
इसको देख झूम कर है आती बहार,
सारे जग पर है हो जाता वसंत का श्रृंगार,
ख़िलतीं हैं कलियाँ तुझको देखकर,
तेरे साथ आता है सावन झूम झूमकर,
तेरी अनुकंपा है बरसती ऐसे,
पूनम में चाँदनीं बरसती है जैसे,
सवेरे की लाली है होती जैसे,
है मेरी माता का मुखड़ा वैसे,
इसको देख झूम कर है आती बहार,
सारे जग पे है हो जाता वसंत का श्रृंगार
कवि मनीष
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