चार पैसों की ख़ातिर,
जो हैं हो जातें मरनें को मजबूर,
हैं कहलाते वो मजदूर,
हर युग में मजदूर,
सड़क पे है आता,
प्रशासन है सबकी ख़बर रखता,
पर केवल मजदूर हीं है इधर-उधर भटकता,
आज भी मजदूरों की है यही हालत,
कल भी रहेगी,
और हमेशा रहेगी,
कोई सड़क पे पड़ा,
गाड़ियों के है नीचे आता,
कोई अपनों को मिलनें की ख़ातिर,
दिन-रात है आँसू बहाता,
पर वो जीवन का सूरज,
होता नहीं सामनें उनके कभी हाज़िर,
चार पैसों की ख़ातिर,
जो हैं हो जातें मरनें को मजबूर,
हैं कहलातें वो मजदूर
कवि मनीष
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