Thursday, 30 April 2020

जीवन कब छीन जाए ये कोई नहीं है जानता,
एक बार जो ये सूरज डूब जाए तो फिर नहीं उगता,
                     मैं तो सदा मुस्कुराता हीं रहा,                         जो ज़िंदादिली की है पहचान वो कभी नहीं मरता

कवि मनीष 
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