हैं हाँथ-पाँव कटे फिर भी चल रहे हैं,
जिस्म हो चुकी है लाश फिर भी चल रहे हैं,
हमनें हीं तो है बनाया हिन्दुस्तान,
पर हमारे आँसू आज नालों में बह रहें हैं
ग़रीबों के क़फ़न से ख़ुशबू आती नहीं,
हमसे सस्ती मौत किसी की होती नहीं,
तू है क्या,तेरी औक़ात क्या,
हम न जो बहाते पसीना,रोटी तेरी बनती नहीं,
बीमारी से हम मरेंगे क्या,
हम तो भूख से मर रहें हैं,
हमारे रोग का भी तो करो इलाज,
हम तो बस यही कह रहें हैं,
हैं हाँथ-पाँव कटे फिर भी चल रहे हैं,
जिस्म हो चुकी है लाश फिर भी चल रहे हैं,
हमनें हीं तो है बनाया हिन्दुस्तान,
पर हमारे आँसू आज नालों में बह रहें हैं
कवि मनीष
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