है प्रेम और भाईचारे का संदेश देती,
नफ़रतों को है पल भर में भूला देती,
नफ़रतों पे भी प्रेम सुमन बरसाकर,
है ईद बुराईयों को सदा के लिए सुला देती
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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