Wednesday, 30 September 2020

अंधियारे के आगोश में सवेरा है,

मानवता के दहलीज़ पर हैवानों का बसेरा है,

इंसानीं लिबास में जो घूमतें हैं भेंड़िये,

उसको पहचानना ऐ नारी बस यही कर्तव्य अब तेरा है 


कवि मनीष 

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Tuesday, 29 September 2020

 है वो धूप जिसमें गर्मीं नहीं,

है सिर्फ़ उजाला अन्धियारा नहीं,

कैसे न कहा जाए,

माँ-बाप हीं है परमेश्वर और कोई नहीं 


कवि मनीष 

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Sunday, 27 September 2020

 आसान है नहीं,

ज़िन्दगी का रस्ता,

यूँ कटता नहीं,

ज़िन्दगी का रस्ता,


आती हैं अर्चनें बहोत,

यूँ पड़ता नहीं मंज़िल से वास्ता,


यूँ कटता नहीं ज़िन्दगी का रस्ता,


है ज़िन्दगी वो अनंत अम्बर,

जिसपे बिखरते हैं हर रंग के बादल,

जो रखता है जीवन से स्नेह,

उसे रखता है ये अपनें पास हरपल,


है दहक इसमें तो है ये छाँव भी,

है खुशी तो है ये ग़म का गाँव भी,


जो जीवन के तरूवर के नीचे,

है सदा रहता,

नूर ए अमन सदा उसपे,

बरसता हीं बरसता रहता,


आसान नहीं,

ज़िन्दगी का रस्ता,

यूँ कटता नहीं,

ज़िन्दगी का रस्ता,


आतीं हैं अर्चनें बहोत,

यूँ पड़ता नहीं मंज़िल से वास्ता 


कवि मनीष 

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Friday, 25 September 2020

है बड़ा अलबेला रूप तेरा,

तू है सृष्टि का चेहरा,

हे माँ भवानीं,

हर हिर्दय है ये कह रहा,


जीवन की ऐसी डोर है तू,

यहाँ-वहाँ सभी ओर है तू,

तेरे चरणों से जीवन अमृत है बह रहा,

हर हिर्दय है ये कह रहा,


कण-कण में समाई है तू,

मैं तेरा और मेरी परछाईं है तू,

मेरे रग-रग में आशीष तेरा,

बनके रक्त है बह रहा,


हर हिर्दय है ये कह रहा,


है बड़ा अलबेला रूप तेरा,

तू है सृष्टि का चेहरा,

हे माँ भवानीं,

हर हिर्दय है ये कह रहा,


हर हिर्दय है ये कह रहा 


कवि मनीष 

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Thursday, 24 September 2020

 हम हैं तो है धरती हँसती,

हम नहीं तो है धरती रोती,

हम हैं कृषक,

जहाँ रख दें कदम,


धरती वहाँ सोना देती,


पर कैसी अजीब है बात,

जो है देता जीवन का सवेरा,

उसे हीं है मिलती काली रात,


सबके तक़दीर को जगाकर,

हमारी तक़दीर हीं सोती,


है हिम्मत हमारे भी भीतर,

पर ज़िन्दगी की रीढ़,

मृत्यु के वारों को कब तक सहेगी,


हमारी तो बस है मांग यही,

आवश्यक मांगों को ठुकराओ न हमारी,


क्योंकि हमारी छाती पर हीं,

धरती माँ है विराजती,


हम हैं तो है धरती हँसती,

हम नहीं तो है धरती रोती,

हम हैं कृषक,

जहाँ रख दें कदम,


धरती वहाँ सोना देती 


कवि मनीष 

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Wednesday, 23 September 2020

 जय कृष्ण,जय राधे बोलो,

जय कृष्ण,जय राधे बोलो,

ये तो सारी धरती कहती,

ये तो सारा अम्बर कहता,


सारी सृष्टि कहती ये,

अपनें मन के द्वार खोलो,


जय कृष्ण,जय राधे बोलो,

जय कृष्ण,जय राधे बोलो,


प्रेम तो है समर्पण बस,॥२॥

है विश्वास का ये दर्पण बस,॥२॥


तुम भी समर्पण के ये शब्द बोलो,


जय कृष्ण,जय राधे बोलो,

जय कृष्ण,जय राधे बोलो,


जय कृष्ण,जय राधे बोलो,

जय कृष्ण,जय राधे बोलो 


कवि मनीष 

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Sunday, 20 September 2020

 थाम के इंसानियत की डोर,

चला जो सब कुछ अपना छोड़,

जैसे बादलों को चीड़ निकलतीं है किरणें,


वैसे निकला एक मानवता का सिरमौर,


कहती है दुनिया जिसको साईं,

कहती है दुनिया जिसको साईं बाबा,


है उसमें ताक़त फ़रिश्तों वाला,


करूणा से अपनीं बना वो,

सबका फ़रिश्ता और परमेश्वर निराला,


कहती है दुनिया उसको साईं,

कहती है दुनिया उसको साईं बाबा,


चलता जो सदा थाम मानवता की डोर,

उसे जाता नहीं वो कभी छोड़,


थाम के इंसानियत की डोर,

चला जो सब कुछ अपना छोड़,

जैसे बादलों को चीड़ निकलतीं है किरणें,


वैसे निकला एक मानवता का सिरमौर 


कवि मनीष 

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 तारों से भरा आकाश कभी दूर नहीं करता अंधेरा,

एक चमकता चाँद है ख़त्म कर देता अंधेरे का बसेरा,

जब दिल है होता स्वच्छ व निर्मल,

उस हिर्दय में बसाता है साईं अपना बसेरा 


कवि मनीष 

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Friday, 18 September 2020

 है फल की कामना रहती जिनको,

ईश्वर कभी मिलते नहीं उनको,

नि:स्वार्थ मन से जो करते हैं भक्ति,

ईश्वर सिर्फ मिलतें हैं उनको,


जो रखते हैं हरवक्त निर्मल मन को,

ईश्वर दिखते हैं उनके मन को,

सत्कर्म करते जाओ कामना करो न फल की,

फल देना है उसकी मर्ज़ी,


परमेश्वर हीं करता स्वच्छ जीवन दर्पण को,


है फल की कामना रहती जिनको,

ईश्वर कभी मिलते नहीं उनको,

निःस्वार्थ मन से जो करतें हैं भक्ति,

ईश्वर सिर्फ मिलतें हैं उनको 


ॐ नमः शिवाय 

कवि मनीष 

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Thursday, 17 September 2020

 प्रकृति की मनमोहक काया गढ़नें वाले,

पृथ्वी को जीवन आवास बनानें वाले,

जय विश्वकर्मा भगवान की,

जय बाबा विश्वकर्मा की,


हर पुष्प,हर सुमन तेरे हीं गुण गाए,

हर जन,देवगण सब तेरे हीं गुण गाए,

लौह को पिघलाकर आकर बदलनें वाले,

जय विश्वकर्मा भगवान की,

जय बाबा विश्वकर्मा की,


प्रकृति की मनमोहक काया गढ़ने वाले,

पृथ्वी को जीवन आवास बनानें वाले,

सदा जय हो विश्वकर्मा भगवान की,

सदा जय हो विश्वकर्मा बाबा की


विश्वकर्मा पूजा की अनंत शुभकामनाएँ 


कवि मनीष 

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Wednesday, 16 September 2020

 माता गंगे,

माता गंगे,

जय हो तेरी माता गंगे,


सदा निश्छलता से बहनें वाली,

अमृत सबको पिलानें वाली,

धरती माँ को सींचनें वाली,


हर विपदा हरनें वाली,


लगे क्यों न तेरे भी जयकारे,

जय हो तेरी माता गंगे,

सदा जय हो तेरी हे माता गंगे,


पर स्वच्छता जब तेरी दूषित होती,

फिर क्रोध तू अपनीं दर्शाती,


सबको तू ये सबक है देती,

स्वच्छता में हीं तू है रहती,


तेरे जल में है वो शक्ति,

अमृत भी आगे जिसके कम लगे,


माता गंगे,

माता गंगे,

जय हो तेरी माता गंगे,


माता गंगे,

माता गंगे,

जय हो सदा तेरी माता गंगे 


कवि मनीष 

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Tuesday, 15 September 2020

 हे शेरोवाली,

सारे जग की रखवाली,

तुझसे हीं आती है सारे जग में दिवाली,


शक्ति तेरी है सबसे बड़ी,

हे आदिशक्ति,

तू तो है महाशक्ति,


तुझसे हीं है जग भाग्यशाली,


हे शेरोवाली,

सारे जग की रखवाली,

तू हीं है करती,


हे माँ ज्योतावाली,


चमत्कारों का चमत्कार,

है तू तो करती,

निर्धन की झोली तू पल भर में भरती,


हे माँ भवानीं,

हे अम्बे रानीं,


तेरी महिमा तो है सबसे निराली,


हे शेरोवाली,

सारे जग की रखवाली,

तुझसे हीं आती है सारे जग में दिवाली,


हे शेरोवाली,

सारे जग की रखवाली,

तू हीं है करती,


हे माँ ज्योता वाली


कवि मनीष 

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Monday, 14 September 2020

हिंदी समस्त भाषाओं का संगम है,

हिंदी समस्त भावनाओं का दर्पण है,

हिंदी रंग-बिरंगे बादलों का है समूह,

हिंदी हरदम महकता चंदन है 


कवि मनीष 

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Sunday, 13 September 2020

 मुस्कुराना परमेश्वर का वरदान है,

ये जीवन का प्रेम और सम्मान है,

हर हाल में मुस्कुराता है जो,

उसी पे परमात्मा होता मेहरबान है 


कवि मनीष 

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Saturday, 12 September 2020

 कहनें को कुछ न कुछ हर लोग कहतें हैं,

सहनें को कुछ न कुछ हर लोग सहतें हैं,

पर कमजोरी उनको छूती नहीं,

जो दिल से जय माता की कहतें हैं 


कवि मनीष 

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Thursday, 10 September 2020

 ताक़त के नशे में जब चूर है होती सत्ता,

उसे अपनें अहंकार के आगे कुछ नहीं दिखता,

जो किया है कुकृत्य तूनें,

तुझको कभी करेगा नहीं क्षमा विधाता


कवि मनीष 

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 बूंद-बूंद से है बनता सागर,

बूंद-बूंद से है बनता बादल,

वहीं तक बस जीवन है,

जहाँ तक है फैला धरती माँ का आंचल,


स्वच्छता है इसका अधिकार,

पर हर कोई चला नहीं सकता स्वच्छता अभियान,

पर अपनीं क्षमता से है कर सकता ज़रूर थोड़ा कल्याण,

क्योंकि बूंद-बूंद से हीं तो बनता है सागर,

बूंद-बूंद से हीं बनता है बादल,


बूंद-बूंद से है बनता सागर,

बूंद-बूंद से है बनता बादल,

वहीं तक बस जीवन है,

जहाँ तक है फैला धरती माँ का आंचल 


कवि मनीष 

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Tuesday, 8 September 2020

 सवेरे की लाली से खिल उठती है प्रकृति,

जैसे प्रकृति में नई जान है भर जाती,

सृष्टि के रचयिता की निराली है हर बात,

क्या अनोखी कारीगरी है परमपिता ब्रह्मा की


कवि मनीष 

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Sunday, 6 September 2020

 गुलशन फूलों से है बनता,

सागर पानीं की बूंदों से है बनता,

पूनम अमावस को है दूर करती,

और लौ आशा की भक्ति से हीं है जलती


कवि मनीष 

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Saturday, 5 September 2020

 आज के शिक्षक तो बस आवारगी में हैं रहते व्यस्त,

अच्छे विद्यार्थियों की करतें हैं जीवन पस्त,

पढ़ाना-लिखाना तो आता नहीं,

पढ़ानें को सिर्फ़ व्यापार बनाकर जेब भरना हीं है बस इनकी औक़ात 


कवि मनीष 


शिक्षक है वो जो विद्यार्थियों में देखे अपना भविष्य,

न की वसूले सिर्फ़ मोटी-मोटी फ़ीस


कवि मनीष 


आज के शिक्षकों को पढ़ाना तो केवल धंधा है,

शिक्षक वो है जो निर्मल ज्ञान से विद्यार्थियों के चरित्र को गढ़ता है 


शिक्षक दिवस की अनंत शुभकामनाएँ 


कवि मनीष 

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Friday, 4 September 2020

 प्रेम से बस जो करतें हैं इसकी भक्ति,

ये माँ लुटाती है उसपे अपनी सारी शक्ति,

भर देती है झोली पल भर में,

सुखों की सौगात ये है उनको देती रहती


जय माँ संतोषी 

कवि मनीष 

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Wednesday, 2 September 2020

 हिर्दय में होता है जब प्रेम सबके लिए,

हिर्दय में होती है जब करूणा सबके लिए,

बन जाता है वो ज़िंदा परमेश्वर,

करता है वो चमत्कारों का चमत्कार सबके लिए


कवि मनीष 

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Tuesday, 1 September 2020

 गंगा माई बहे ला भोले बाबा के किरपा से,

भुजंग देव निखारे ला भोले बाबा के रूपवा के,

सबके मन मोहे ला भोले बाबा के रूपवा,

करेला तांडव जब कोहराम मचेला पाप के नगरिया में 


कवि मनीष 

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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...