अंधियारे के आगोश में सवेरा है,
मानवता के दहलीज़ पर हैवानों का बसेरा है,
इंसानीं लिबास में जो घूमतें हैं भेंड़िये,
उसको पहचानना ऐ नारी बस यही कर्तव्य अब तेरा है
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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