एक था गाँधी,
जैसे आँधी,
दुबला-पतला सा,
पर डरता न ज़रा भी,
मशाल जली क्रांति की,
पर किसी से जली न सदा जी,
केवल एक नें जलाई जो मशाल क्रांति की,
वो जलती रही सदा जी,
उस मशाल के दहक में,
जल गए सारे ज़ालिम जी,
कहनें वाले तो कहते हीं हैं रहते,
पर था जो दम उसकी लाठी में,
वो था कहाँ गोले,बारूद में जी,
क्रांति तो बहोतों नें की,
पर उनमें था कहाँ वो दम जी,
जो था उस फ़कीर में जी,
जिसके सोंच के आगे,
झुक गया वक्त भी,
एक था गाँधी,
जैसे आँधी,
दुबला-पतला सा,
पर डरता न ज़रा भी
महात्मा गाँधी जी के जयंती की अनंत शुभकामनाएँ
कवि मनीष
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छोटा सा था क़द,
और बुद्धि थी जैसे शमशीर,
हर अर्चन को जो देता था,
पल भर में चीड़,
था वो राष्ट्र की छतरी,
है कहता ज़माना जिसे लाल बहादुर शास्त्री,
था जो देश की ढ़ाल,
जवानों और कृषकों का दुलार,
हरता था जो पल भर में,
राष्ट्र की पीड़,
छोटा सा था क़द,
और बुद्धि थी जैसे शमशीर,
हर अर्चन को जो देता था,
पल भर में चीड़,
था जो देश का वसंत-बहार जी,
है कहता ज़माना जिसे लाल बहादुर शास्त्री,
था जो देश की छतरी,
है कहता ज़माना जिसे लाल बहादुर शास्त्री
लाल बहादुर शास्त्री जी के जयंती की अनंत शुभकामनाएँ
कवि मनीष
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