बूंद-बूंद से है बनता सागर,
बूंद-बूंद से है बनता बादल,
वहीं तक बस जीवन है,
जहाँ तक है फैला धरती माँ का आंचल,
स्वच्छता है इसका अधिकार,
पर हर कोई चला नहीं सकता स्वच्छता अभियान,
पर अपनीं क्षमता से है कर सकता ज़रूर थोड़ा कल्याण,
क्योंकि बूंद-बूंद से हीं तो बनता है सागर,
बूंद-बूंद से हीं बनता है बादल,
बूंद-बूंद से है बनता सागर,
बूंद-बूंद से है बनता बादल,
वहीं तक बस जीवन है,
जहाँ तक है फैला धरती माँ का आंचल
कवि मनीष
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