गंगा माई बहे ला भोले बाबा के किरपा से,
भुजंग देव निखारे ला भोले बाबा के रूपवा के,
सबके मन मोहे ला भोले बाबा के रूपवा,
करेला तांडव जब कोहराम मचेला पाप के नगरिया में
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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