नानक न गिरे ज़ुल्म के आगे,
नानक नाम से हर ज़ुल्मी भागे,
न रूके कृपाण तब तलक,
जब तलक सूरज अमन का न जागे
गुरू नानक जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ
कवि मनीष
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फूलों नें बनाई सेज बहार की,
गगन नें पुष्पों की बौछार की,
जब राधा-कृष्ण नें किया श्रृंगार,
तब चद्रंमा नें अपनें शीतल किरणों की बौछार की
कवि मनीष
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ख़ून से रंग चुकी थी धरती,
जीवन मौत के चंगुल में थी फंस गई,
तब शौर्य से लिखी वीरों नें,
मानवता की एक नई कहानी
ये रचना मैंनें २६/११ पर लिखी है ।
कवि मनीष
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सन ५७ की मिसाल वही,
है चमकती तलवार वही,
युद्ध की रक्त रंजित धरा पर,
सबसे ऊँची है हुंकार वही,
थें अश्व,गज जिसके मित्र,
है जिसका सबसे ऊँचा चरित्र,
चमचमाती भानु के किरणों की,
है अद्भुत तेज वही,
सर कटा कर जो भी न गिरे,
है ऐसी अडिग चट्टान वही,
है नारी की कोमलता,
पर करती है संहार वही,
है स्वाभिमान ऊँचा जिसका सबसे,
ऐसी अटल है पर्वत शिखा वही,
हैं तो वीरांगनाएँ बहोत पर,
पर रानी लक्ष्मीबाई सा कोई नहीं
सन ५७ की मिसाल वही,
है चमकती तलवार वही,
युद्ध की रक्त रंजित धरा पर,
सबसे ऊँची है हुंकार वही
कवि मनीष
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अगर नारी है फूल,
तो पुरूष है शूल,
बग़ैर शूलों के फूल रहता नहीं सुरक्षित,
सरलता से तोड़ कर उसे ले जाता है,
कोई भी पंथी,
नारी अगर सुंदरता है,
तो पुरूष आईना है,
बग़ैर इस आईनें के,
सुंदरता नहीं किसी काम की,
वो सुंदरता है, बस नाम की,
नारी अगर है अपराजिता,
तो पुरूष भी है त्रिशूल,
है अगर नारी फूल,
तो पुरूष है शूल,
बग़ैर शूलों के फूल रहता नहीं सुरक्षित,
सरलता से तोड़ कर उसे ले जाता है,
कोई भी पंथी
कवि मनीष
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जय हो छठी माई,
जय हो छठी माई,
आसीस आपन सब पर,
बरसईया हो माई,
जय हो छठी माई,
जय हो छठी माई,
आवे से तोहार,
रौनक छाईल सगरो,
जईसे सूरूज देव के,
ललिया छाई ला सगरो,
होवेला जहाँ पूजन तोहार,
ओजा कउनो न मुरझाई,
जय हो छठी माई,
जय हो छठी माई,
जय हो छठी माई,
जय हो छठी माई,
आसीस आपन सब पर,
बरसईया हो माई,
जय हो छठी माई,
जय हो छठी माई ,
जय हो छठी माई,
जय हो छठी माई
आप सभी को महापर्व छठ की असीम शुभकामनाएँ
कवि मनीष
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दीपावली मनाओ सुहानी,
जलाओ प्रेम के दीप,
लिखो स्नेह की कहानी,
दीपावली मनाओ सुहानी,
है ये पर्व चैन ओ अमन के लिए,
जैसे साईं का चमत्कार,
है जन-जन के लिए,
है दिवाली का त्यौहार,
बहाता खुशियों की निर्मल गंगा,
जैसे साईं है बहाता,
आशाओं की गंगा,
दीपावली है इबारत,
प्रेम की जानी-पहचानी,
दीपावली मनाओ सुहानी,
दीपावली मनाओ सुहानी
कवि मनीष
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दिवाली की सफ़ाई
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दिवाली की सफ़ाई,
बड़ी है ज़ालिम होती भाई,
सारे काम-काज़ छुड़वाकर,
करवाती है अनचाही कसरत भाई,
दिवाली की सफ़ाई,
जिसका है जितना बड़ा घर,
उसकी है होती उतनीं हीं बदन खिंचाई,
मन तो है होता प्रसन्न,
क्योंकि घर की सफ़ाई है होती भाई,
इसी कारण ये अनचाही मेहनत भी,
भरती है रंग-बिरंगी आशाएँ भाई,
यही है होती दिवाली की सफ़ाई,
दिवाली की सफ़ाई,
दिवाली की सफ़ाई,
बड़ी है ज़ालिम होती भाई ,
सारे काम-काज़ छुड़वाकर,
करवाती है अनचाही कसरत भाई
कवि मनीष
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भुजाओं में शक्ति है अपार,
मचा दे जो शत्रुओं में हाहाकार,
है वो बजरंगी,बजरंगबली,
जो है मानवता का सार,
जो कर दे रात को सवेरा,
पल भर में दूर कर दे अंधेरा,
है जो ज्ञान का भण्डार,
जो है फैलाता उजियारा हीं उजियारा,
है जो चमत्कारों का चमत्कार,
भुजाओं में शक्ति है अपार,
मचा दे जो शत्रुओं में हाहाकार,
है वो बजरंगी,बजरंगबली,
जो है मानवता का सार
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...