माई के चुनरी में समाईल बाटे सब रंग,
माई के साथ चलेला सारा जग संग-संग,
जेके मन में बसेला माई के निर्मल छवि,
माई के आशीष चलेला ओके संग-संग
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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