मुस्कुरा कर जो पी जाये प्याला विष का,
जो बतला जाए सच्चा अर्थ प्रेम का,
है सोंच उसकी ऊँची जैसे गगन विशाल,
है उसकी हार भी फ़लसफ़ा जीत का
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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