खंडित होते भारत को किया एक साथ,
वो सरदार था,कमाल,धमाल,बेमिसाल
कवि मनीष
****************************************
जो कह दिया बस बन गया वही विधान,
थी अटल चट्टान इंदिरा की ज़ुबान
कवि मनीष
****************************************
प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
No comments:
Post a Comment