राम नाम है बसो मोरे रोम-रोम में,
हर क्षण है बीते बस प्रभु के नेह में,
प्रभु मोरे हैं स्वामीं सर्वस्व के,
है सृष्टि पले मोरे प्रभु के स्नेह से
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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