Wednesday, 11 November 2020

 दिवाली की सफ़ाई 

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दिवाली की सफ़ाई,

बड़ी है ज़ालिम होती भाई,

सारे काम-काज़ छुड़वाकर,

करवाती है अनचाही कसरत भाई,


दिवाली की सफ़ाई,


जिसका है जितना बड़ा घर,

उसकी है होती उतनीं हीं बदन खिंचाई,

मन तो है होता प्रसन्न,

क्योंकि घर की सफ़ाई है होती भाई,


इसी कारण ये अनचाही मेहनत भी,

भरती है रंग-बिरंगी आशाएँ भाई,

यही है होती दिवाली की सफ़ाई,


दिवाली की सफ़ाई,

दिवाली की सफ़ाई,

बड़ी है ज़ालिम होती भाई ,

सारे काम-काज़ छुड़वाकर,

करवाती है अनचाही कसरत भाई 


कवि मनीष 

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