सन ५७ की मिसाल वही,
है चमकती तलवार वही,
युद्ध की रक्त रंजित धरा पर,
सबसे ऊँची है हुंकार वही,
थें अश्व,गज जिसके मित्र,
है जिसका सबसे ऊँचा चरित्र,
चमचमाती भानु के किरणों की,
है अद्भुत तेज वही,
सर कटा कर जो भी न गिरे,
है ऐसी अडिग चट्टान वही,
है नारी की कोमलता,
पर करती है संहार वही,
है स्वाभिमान ऊँचा जिसका सबसे,
ऐसी अटल है पर्वत शिखा वही,
हैं तो वीरांगनाएँ बहोत पर,
पर रानी लक्ष्मीबाई सा कोई नहीं
सन ५७ की मिसाल वही,
है चमकती तलवार वही,
युद्ध की रक्त रंजित धरा पर,
सबसे ऊँची है हुंकार वही
कवि मनीष
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अगर नारी है फूल,
तो पुरूष है शूल,
बग़ैर शूलों के फूल रहता नहीं सुरक्षित,
सरलता से तोड़ कर उसे ले जाता है,
कोई भी पंथी,
नारी अगर सुंदरता है,
तो पुरूष आईना है,
बग़ैर इस आईनें के,
सुंदरता नहीं किसी काम की,
वो सुंदरता है, बस नाम की,
नारी अगर है अपराजिता,
तो पुरूष भी है त्रिशूल,
है अगर नारी फूल,
तो पुरूष है शूल,
बग़ैर शूलों के फूल रहता नहीं सुरक्षित,
सरलता से तोड़ कर उसे ले जाता है,
कोई भी पंथी
कवि मनीष
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