चंद्रमा की किरणें जो पड़ीं तो हो गईं वो भी और शीतल,
साथ है रहती जिसके ज्वाला और जल पल पल,
है बड़ा हीं अलौकिक,अद्भुत रूप उसका,
कहती है जिसे जगदम्बा सारी सृष्टि,अग्नि,वायु,गगन,जल और थल
कवि मनीष
****************************************
प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
No comments:
Post a Comment