होती है मानवता हर धर्म से ऊपर,
जो समाता है इसको भीतर अपनें वो बन जाता है परमेश्वर,
है साईं मानवता का हीं रूप,
सो दुनिया पूजती है उन्हे साईं बाबा कहकर
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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