जानें वाले को कौन रोकता है,
जाना हीं होता है उसे जब मौत का बुलावा आता है
कवि मनीष
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पेड़ों से भरा वो गाँव था मेरा,
जीवन से भरा वो गाँव था मेरा,
शीतल पूर्वा बहती थी जहाँ,
गर्मियों में भी ठंड रहती थी वहाँ,
जहाँ होता था महकता हर सवेरा,
रात के चादर पे रहता था चाँदनीं का बसेरा,
पेड़ों की छाँव से था भरा गाँव मेरा,
पेड़ों से भरा वो गाँव था मेरा,
पर अब वहाँ वो बात न रही,
वो मटके की सौंद्धि सुगंध न रही,
शहरों नें कर लिया है उसपे भी क़ब्ज़ा,
वो महकती सुबह,दिन,शाम व रात न रही,
बाज़ारीकरण की इस दुनिया में,
प्रेम में निश्छलता न रही,
कहना मेरा तो है बस इतना हीं,
गाँव को गाँव हीं रहनें दो,
आधुनिकरण करना कोई ग़लत बात नहीं,
पर उससे किसी की निश्छलता मत छीनों,
क्योंकि मासूमियत तो है इक सौगात बड़ी,
बस इतना हीं कथन था मेरा,
पेड़ों से भरा वो गाँव था मेरा,
जीवन से भरा वो गाँव था मेरा,
शीतल पूर्वा बहती थी जहाँ,
गर्मियों में भी ठंड रहती थी वहाँ
कवि मनीष
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मैंनें पूछा श्याम से तू रहता है कहाँ,
तू रहता है कहाँ,
उसनें कहा जहाँ है बंसी की तान मैं रहता हूँ वहाँ,
मैं रहता हूँ,वहाँ,
मैंनें पूछा श्याम से...
जब खिलती है कली मैं रहता हूँ उसमें,
जब महकता है सुमन मैं बसता हूँ उसमें,
जब बरसता है बादल,
मैं रहता हूँ उसमें,
जहाँ तक है अम्बर मैं हूँ वहाँ,
मैंनें पूछा श्याम से तू रहता है कहाँ,
तू रहता है कहाँ,
उसनें कहा जहाँ है बंसी की तान मैं रहता हूँ वहाँ,
मैं रहता हूँ वहाँ
गीत
कवि मनीष
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एकदंत,गजानन,गणाधिप,लम्बोदर,
है जबतक सृष्टि अनंत,
तेरी सदा जय हो,
जब तक रहे तारों का अम्बर,
तेरी सदा जय हो,
हर क्षण तेरी महिमा मंडन हो,
तेरा मुख सदा हर जन का दर्पण हो,
सर्वप्रथम पूजनीय विधाता,
तेरी सदा जय हो,
एकदंत,गजानन,गणाधिप,लम्बोदर,
है जबतक सृष्टि अनंत,
तेरी सदा जय हो,
जब तक रहे तारों का अम्बर,
तेरी सदा जय हो
कवि मनीष
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हे कृष्ण जब तू बंसी बजाए,
तेरी तान सब को लुभाए,
पर मेरे हिर्दय को,
तेरे बंसी ख़ूब रूलाए,
कहे मीरा कृष्ण से,
स्वप्न में दियो मोहे दर्शन,
क्यों सच में न समीप आए,
शूलों पर चली मैं,
और दिया सर्वस्व लुटाए,
पर जीते जी तू मुझको मिला न,
तो मैंनें मृत्यु को लिया गले लगाए,
आज समस्त संसार मोहे,
तुझसे जोड़ के मोहे बुलाए,
यही तो थी मोरे जीवन की कामना,
सो अब मोरा जीवन मोहे भाए,
हे कृष्ण जब तू बंसी बजाए,
तेरी तान सब को लुभाए,
पर मेरे हिर्दय को,
तेरी बंसी ख़ूब रूलाए
कवि मनीष
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स्वतंत्रता दिवस की मुबारक़बाद,
रहे हमारा देश हमेशा आबाद,
स्वतंत्र आकाश में सदा लहराए,
हमारा तिरंगा बार-बार,
धानीं चुनर सदा ओढ़े रहे धरती सदा हमारे वतन की,
सदा लहराती रहे चुनर भारत माता की,
कभी कम न हो हमारे राष्ट्र का सम्मान,
हर सुबह हो निराली,चमकदार हो हर रात,
स्वतंत्रता दिवस की मुबारक़बाद,
रहे हमारा देश हमेशा आबाद,
स्वतंत्र आकाश में सदा लहराए,
हमारा तिरंगा बार-बार
कवि मनीष
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आया जन्माष्टमी का त्यौहार,
बिखरे हरसू पुष्प हज़ार,
आया जन्माष्टमी का त्यौहार,
मन गाए मीठे राग,
सारी सृष्टि बजाए मधुर साज़,
किशन-कन्हैया के आगमन में,
सारी सृष्टि नें किया अद्भुत श्रृंगार,
चारों तरफ़ छाई गई,
बहार हीं बहार,
आया जन्माष्टमी का त्यौहार,
बिखरे हरसू पुष्प हज़ार,
आया जन्माष्टमी का त्यौहार
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की अनेकों शुभकामनाएँ
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...