मन बनें उपवन,बनें अति पावन,
तान छेड़े जब राधा,कृष्ण के संग-संग,
बनें सुरों की ऐसी माला,
बन जाए जिससे सुरों का महा संगम
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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