कंकड़ को बना दे पत्थर,
बूंद को बना दे सागर,
है शक्ति उसमें इतनीं,
मृत्यु को भी कर दे निरउत्तर
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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