Saturday, 8 August 2020

  

वो बनकर चाँद एकटक हमें देखतें हैं,

हम शायद उनकी निगाहों में रहतें हैं,

बनके बादल वो तो हैं ऊपर हमारे मंडराते रहते,

हम शायद उनके ख़्वाबों-ख़्यालों में रहतें हैं 


कवि मनीष 

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