बड़ा हीं पुराना है ये बंधन,
युगों-युगों से है चला आ रहा ये त्यौहार अति पावन,
भाई-बहन का है ये त्यौहार अनोखा,
है ये अटूट रक्षा का रक्षा बंधन
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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