रंग जीवन में सुख और दुःख दोनों के हीं हैं होतें,
जो इस सत्य को हैं मानते वो कभी कमज़ोर नहीं पड़तें,
माता तो सदैव साथ रहतीं हैं अपनें उन संतानों के साथ,
जो उसको कभी अपनें हिर्दय से दूर नहीं करतें
कवि मनीष
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न जानें कौन सी की है, ख़ता,
क्यों देतें हैं लोग दग़ा,
प्रेम का सिला मिलता नहीं,
मिलता है सिर्फ़ धोख़ा,
कौन कहता है परमेश्वर करता नहीं ग़लती,
जहाँ करना नहीं था जिसे पैदा,
कर पैदा उसनें वहाँ उसकी ज़िन्दगी तबाह कर दी,
मेरे मुँह से निकलती है अब सिर्फ़,
बद्दुआ,
न जानें कौन सी की है, ख़ता,
क्यों देतें हैं लोग दग़ा,
प्रेम का सिला मिलता नहीं,
मिलता है सिर्फ़ धोख़ा
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...