आसमां को ज़मीं पर झुका जाते हैं,
सूरज,चाँद,सितारों को धरती पर उतार लाते हैं,
हैं राम बसें मेरे रोम-रोम में,
महावीर बजरंगी ये बार-बार दुहराते हैं
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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