सुमन और सुगन्ध एक दूजे बिन हैं अधूरे,
वैसे हीं कृष्ण और राधा एक दूसरे बिन हैं अधूरे,
है इनकी प्रीत पराकाष्ठा प्रेम की,
तभी तो समस्त जगत् इनको है पूजे
कवि मनीष
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प्रेम जब पहुँचे हिर्दय की गहराई तक, पराकाष्ठा पहुँचे उसकी नभ की ऊँचाई तक, प्रेम अगर रहे निर्मल गंगा माई के जैसे, वो प्रेम पहुँचे जटाधारी के ...
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